पार्ट 3 – गॉडस ओन कंट्री :
वैसे समय बड़ा बलवान होता है, हर घाव भुला देता है, परम भी अब संभलने लगा था और इंतज़ार के साथ आगे की सोचने लगा| एक वेब सीरीज की तरह, लॉकडाउन 1.0, 2.0, 3.0 और 4.0 आते चले गए पर परम को कविता नहीं मिली| फिर वह दिन आया जिसका इंतज़ार परम दिन-रात किया करता था, खुशखबरी आई कि सरकार ने अनलॉक 1.0 का एलान कर दिया है| थोड़ी देर तो परम को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, फिर संभलते हुए कविता को फ़ोन लगा दिया| कविता भी बहुत खुश थी आखिर लगभग तीन महीनें बाद दोनों मिलने वाले थे|
परम ने सारे जुगाड़ लगा दिए और कविता को घर ले ही आया| आज उसकी हालत उस बच्चे सी थी, जिसे नाश्ते में मैगी, लंच में बर्गर और डिनर में पिज़्ज़ा मिल गया हो| सब ठीक ठाक हो गया था, सभी खुश थे| सिर्फ एक बात खटक रही थी, इतने प्यार से बनाया घूमने का प्लान चौपट हो गया था| न तो वादियाँ दिखीं न समुंदर, फोटो के नाम पर सिर्फ शादी का एलबम|
कितने ही दोस्तों को शादी के बाद घूमने की कहानियां सुनाते सुना था, परम ये बात भूल नहीं पाया था और दिन रात सोचता रहता| घर पर कैसे बोलूं, होटल बुकिंग के सारे पैसे तो डूब गए, पिता जी तो सुनते ही नाराज़ हो जाएंगे, पर कुछ तो करना ही होगा, हमारा हनीमून ऐसे ही जाने न देंगे| हॉलिडे लिस्ट चेक करी तो एक ही आप्शन दिखा, अक्टूबर में नवरात्रि की छुट्टियाँ| पर यह क्या, पिता जी ने तो पहले से सबका टिकट करा रखा है, शादी के बाद सपरिवार गाँव जाना था और कुलदेवी की पूजा करनी थी| पिता जी से बात करूँगा तो भड़क उठेंगे, एक तो टिकट के पैसे का नुक्सान ऊपर से पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा का खंडन| क्या करता, जोश- जोश में कविता को भी वादा कर चुका था, “ये हमारी जुबान है, जब तक वो खुशियाँ, तुम्हे दे न दें, हम चैन से न बैठेंगे|” परम जुगाड़ लगाने में लग गया, आखिर माँ को समझाना, पिता जी को समझाने से थोड़ा आसान लगा| पिता जी भले कितने कड़क हों, माँ के सामने न पहले चली थी, न अब| एक बार माँ मान गयी तो सब हाथ में, लेकिन प्लान ऐसा हो कि माँ मना न कर पाएं| मन ही मन बोला, “क्या करें? क्या करें?….हाँ, एक तरीका है माँ को बोलेंगे कविता की तबियत ख़राब है, चक्कर और उल्टी आ रही है, और हर घर की तरह माँ का भी पोता- पोती का नाम सोचना शुरू…..|” फिर क्या था यही पक्का हुआ, यात्रा से दो दिन पहले कविता चक्कर और उलटी का बहाना करेगी और दोनों घर पर ही रुकेंगे और सबके जाते ही ताला मार के घूमने चल देंगे| सब सेट था, इन्टरनेट पर चुपचाप टिकट भी बुक करवा लिए| होटल भी फाइनल कर लिया, सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा सोचा था, दोनों बहुत खुश थे|

उधर दूसरे कमरे में अलग ही महाभारत चल रही थी….. भाभी, भाईसाहब से नाराज़गी में बोलीं, “बारह साल हो गए शादी को….गाँव, मायके और शिर्डी के अलावा कहीं घुमाने नहीं ले गए|” बड़े भाईसाहब की स्टेशनरी की दुकान थी और फुर्सत कम ही मिलती थी| मन तो उनका भी था, बोले, “कुछ करता हूँ…..” भाभी से पूछा, “मायके में कोई ऐसा रिश्तेदार है जिसको दोबारा मार सकती हो”| पहले तो भाभी भड़की फिर बोलीं, “क्या बकवास कर रहे हो जी|” भाईसाहब बोले, “अरे ऐसा कोई बताओ जो पहले से स्वर्गवासी हो, उसे ही स्वर्गवासी बना देंगे, काम का काम हो जायेगा और पाप भी न लागेगा|” पहले तो भाभी हिचकिचाईं पर घूमने के सामने ये काण्ड करने को भी मान गयीं| फिर क्या था पूरी प्लानिंग हो गई, जिस दिन गाँव जाने का टिकट है, उसी दिन मरे हुए रिश्तेदार के दोबारा मारेंगे और मायके जाने के बजाय घूम के आएंगे| रही बात समीर की तो वह माँ पिता जी के साथ गाँव घूम लेगा| बात जंच गयी और तैयारी शुरू हो गयी|
समय बीता अक्टूबर आ गया था, तैयारियों को अंजाम देने का समय आ चुका था| परम, माँ के पास आया और घबरा कर बोला, “माँ , कविता की तबियत कुछ ख़राब लग रही है एक बार चल के देख लो”, योजनानुसार कह दिया गया चक्कर आ रहा है और एक दो उल्टी भी हुई है, बस, माँ के अन्दर की दादी अचानक जाग गई और बोलीं, “बेटा तुम आराम करो”| सब कुछ वैसा ही चल रहा था जैसा परम चाहता था| माँ ने कविता को आराम करने को बोला और परम से बोलीं, “तुम बहू के साथ रुक जाओ और उसका ख्याल रखना|” उनके चेहरे की हल्की मुस्कराहट बता रही थी कि जल्द ही उनकी मुराद पूरी होने वाली थी|
रात में सारी तैयारियां शुरू हो गयी, बैग पैक होने लगे, तभी बड़ी भाभी के रोने की आवाज़ आई, भाईसाहब घबराए हुए बाहर आये और उदास मन से बोले, “संजना के बड़े मामा गुजर गए है, अभी अभी फ़ोन आया है|” भाईसाहब और भाभी की अदाकारी देख ऐसा लगा जैसे मंझे हुए कलाकार….एक पल को तो माँ और कविता की भी रुलाई छूट गयी| भाभी के सात मामा थे सो कनफ्यूज़न हमेशा बना रहता था|
मंथन के बाद विचार यह बना कि, भाईसाहब सुबह माँ –पिताजी को ट्रेन में बैठा कर उधर से ही भाभी के मायके इंदौर निकल जायेंगे, समीर माँ पिताजी के साथ ही जाएगा और परम और कविता घर पर रहेंगे|
सब कुछ प्लान के मुताबिक चला, सुबह भाईसाहब, भाभी, माँ-पिताजी और समीर स्टेशन गए | भाई साहब ने पिताजी को जबलपुर – कन्याकुमारी एक्सप्रेस के एस-3 कोच में बैठा दिया, पैर छुआ और बाहर खिड़की पर आ गए, भाभी की एक्टिंग अभी भी फिल्मफेयर के लिए नामांकित होने लायक थी| ट्रेन चली और जैसे ही कोच आगे बढ़ा दोनों के चेहरे के भाव बदल गए….. दोनों ने एक लम्बी सांस ली और चल दिए प्लेटफार्म नंबर 6 की ओर, दिल्ली से चलकर त्रिवंद्रम जाने वाली ट्रेन के आने का समय होने वाला था| भाभी आज बहुत खुश थी, शादी के बारह साल बाद कहीं घूमने जा रहीं थी, वो भी समुंदर के पास| ट्रेन समय पर थी और टिकट भी एडवांस में करवा लिया था सो दोनों ट्रेन में बैठ गए | भाईसाहब और भाभी दोनों ही एक दूसरे को देखकर नव विवाहित दम्पति की तरह मंद- मंद मुस्काए और ट्रेन में सामान जमाने लग गए|
परम की भी तैयारी पूरी हो चुकी थी, ऑटो बाहर खड़ी थी, शाम चार बजे की ट्रेन थी| ट्रेन भोपाल से ही चलनी थी सो टिकट मिलना भी आसन था, वैसे तो सारी बुकिंग एडवांस थी| परम ने ताला मारा और दोनों स्टेशन के लिए चल दिए|
उधर पिता जी की ट्रेन में अलग ही कांड शुरू हो गया था, अचानक दो आदमी आए और बोले, “ये हमारी सीट है|” पिता जी भड़क गए और लगे धौंस जमाने| तभी एक आदमी टिकट दिखाते बोला, “बड़े भाई, ये देखिये रिजर्वेशन हमारा है|” तेज़ होती बहस को सुन टी.टी. भी आ गया और लगा कुशल जज की तरह दोनों पक्ष की ज़िरह सुनने| अब समय था सबूत पेश करने का, दोनों के ही टिकट सही थे| पिता जी टी.टी. को टिकट दिखाते हुए बोले, “आज- कल एक ही बर्थ कि दो –दो बुकिंग कर देते हो क्या….?” टी.टी. साहब ने टिकट को देखा, फिर पिता जी को देखा, फिर बोले, “बाऊ जी आप गलत ट्रेन में बैठ गए है…यह ट्रेन जबलपुर नहीं कन्याकुमारी जा रही है|” पिता जी का पारा गरम, लगे भाई साहब को कोसने, नालायक, निकम्मा, किसी काम का नहीं, एक काम बोला था वो भी ठीक से नहीं किया| माँ भी परेशान थी बोली, “अब क्या…?” टी.टी. बोला, “बाबू जी जरा इधर आइए, आप काफी आगे आ गए हैं, फाइन बनाना पड़ेगा|” पिता जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था, माँ और समीर से बोले, तुम समान संभालो, हम कुछ करते हैं| वैसे तो पिता जी गरम दिमाग के थे पर ऐसी परिस्थितियों में दिमाग खूब चला लेते थे| अपने आप को शांत करते हुए टी.टी. के पास पहुँच गए|
न जाने क्या बात हुई, जब वो माँ के पास लौटे तो चेहरे से गुस्सा गायब था| बोले, “चलो सामान उठाओ|” माँ बोली, “अरे ट्रेन तो अभी चल रही है स्टेशन तो आने दो, तब न उतरेंगे|” पिताजी ने सूटकेस उठाया और चलते- चलते बोले, “अरे! इसी डिब्बे में आगे की दो सीट मिली है, हम कन्याकुमारी जा रहे हैं|” माँ एक मिनट को रुकी फिर बोली, “अरे.. क्या बोल रहे हो जी, कहाँ जबलपुर और कहाँ कन्याकुमारी|” पिता जी बोले, “चलो चलो बताता हूँ…. इतने सालों कहती रही हम कभी समुंदर न देख पाए, ट्रेन कन्याकुमारी जा रही है और हमने टी.टी. से बात कर ली है| जबलपुर हम फिर कभी चले चलेंगे, वैसे भी विकास, परम और बहुएं नहीं है, अभी समुंदर देखने चलते हैं|” माता जी को शादी का पहला वचन याद आ गया|

पिता जी ने माँ को मना हि लिया कि बच्चों को अभी इस यात्रा के बारे में नहीं बताएँगे, जब घर पहुंच जायेंगे तो सरप्राइज देंगे|
सब कुछ वैसा हो जैसा प्लान किया है ऐसा ज़रूरी तो नहीं, होता वही है जो प्रभु करवाते हैं| इस बार प्रभु की इच्छा कुछ मज़ेदार करवाने की थी सो पिताजी को माँ और समीर से साथ, भाई साहब को भाभी के साथ और परम को कविता के साथ घूमने भेज दिया….बस ट्विस्ट यह डाल दिया कि तीनों जोड़े पहुंच गए “केरल”, गॉडस ओन कंट्री ।
3 replies on “शादी और लॉकडाउन (Shaadi aur Lockdown) Ch-3”
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bahut khub
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Thank you
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