पार्ट 2 – जनता कर्फ्यू :
सुबह जब नींद खुली तो भोपाल स्टेशन आ चुका था | परम के बड़े भाईसाहब लेने आये थे और थोड़ी ही देर में परम घर पर था| शरीर तो घर पर था पर मन कही और….| देखते- देखते चार दिन और बीत गए, परम मन ही मन बहुत उत्साहित था, “19 तारीख हो गयी है, 26 तारीख को कविता का टिकट है और फिर 29 मार्च को केरल का टिकट”| मन ही मन घूमने फिरने और सेल्फी के हर पोज़ की प्लानिंग हो चुकी थी| तभी व्हाट्सएप पर मैसेज आया: “प्रधानमंत्री जी का देश के नाम सन्देश आज शाम 4 बजे”, पढ़ते- पढ़ते ही टीवी के ब्रेकिंग न्यूज़ वाले फोटो भी आने शुरू हो गए| पाकिस्तान, कश्मीर, डीमोनाटाइजेशन, सब दिमाग में घूमने लगे, फिर टीवी देखा तो वाकई हर चैनल यही बोल रहा था “पीएम् का राष्ट्र के नाम संबोधन शाम 4 बजे सबसे पहले हमारे चैनल पर”| मन के भाव काफी मिले जुले से थे समझ नहीं आ रहा था देशभक्ति, देशप्रेम या अर्थशास्त्र, ये संबोधन किस ओर है…|
परम दोस्तों के साथ ऑफिस के बाहर वाली चाय की दुकान पर पंहुचा और चाय ऑर्डर कर दी| बहस शुरू ही थी की चाय वाले ने टीवी की आवाज़ बढ़ा दी| संबोधन को सिर्फ 2 मिनट बचे थे, अपने आप ही सब शांत हो गए | इतने शांत तो किसी की मौन सभा में भी नहीं होते, सभी के कान ब्रेकिंग न्यूज़ सबसे पहले सुनने को बेताब थे | प्रधानमंत्री जी टीवी स्क्रीन पर आये और सभी कयासों के इतर करोना की बात कर दी| इस वैश्विक महामारी की असल गंभीरता तब समझ में आई | कुछ लोगों ने तो उसी वक़्त रुमाल निकल के चेहरे पर बांध लिया| बात यही नहीं रुकी, एलान हुआ कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू मनाएंगे और शाम को ताली और थाली पीटेंगे| भाषण ख़तम और चर्चा शुरू, उधर टीवी पर और इधर चाय की दुकानों पर|
शाम बीती, परम घर पंहुचा तो माँ ने हाथ आगे बढ़ाने को कहा, परम को लगा प्रसाद होगा पर हाथ पे गिरा सैनीटाइज़र| प्रधानमंत्री जी का आवाहन और परम के घर पर टल जाये मजाल है| डिनर टेबल पर जनता कर्फ्यू की तैयारियों का जाएजा लिया गया, कितनी सब्जियां, कितना राशन रखना है पूरी रणनीति तैयार थी|
22 तारीख आई, सभी नहा धो के तैयार थे, बड़े- बुजुर्ग एवं समाजसेवियों ने ज़िम्मेदारी के साथ गुडमार्निंग के साथ जनता कर्फ्यू के पालन का मेसेज आगे बढ़ा दिया| कुछ वालंटियर तो शंख और घंटे की आवाज़ वाली आडियो क्लिप भी जुगाड़ लाये और फॉरवर्ड का सिलसिला चल पड़ा| सभी को 5 बजे का इंतज़ार था, समय आ गया था परम ने टेबल सरका कर स्पीकर बालकनी में लगा लिया था, स्पीकर मोबाइल से कनेक्टेड था, दूसरे मोबाइल के साथ बड़े भाई साहब फोटो खींचने को तैयार थे, तभी दूर कहीं थाली पीटने की आवाज़ आने लगी, अभी 4:50 ही हुए थे| लगता है समय पर पहुंचने की होड़ में आगे बढ़ाई गयी घड़ियों ने 5 बजा दिया था| खैर क्या ताली, क्या थाली, स्पीकर, घंटा, शंख, हूटिंग शुरू तो शुरू| सच मानिए काफी सालों बाद एहसास हुआ परिवार वालों के साथ एन्जॉय करना क्या होता है| दस मिनट बीते और त्योहारों कि तरह रिश्तेदारों को फ़ोन लगाना शुरू| परम और कविता ने भी परम्परागत तरीके से एक दूसरे को फोटो और विडिओ शेयर कर दिए|

खैर, दिन जनता कर्फ्यू की तैयारी और शाम जश्न में बीत गया, जश्न भी ऐसा मना की कुछ शहरों में लोग ढ़ोल-नगाड़े ले कर चौराहों पर उतर आये ऐसा लग रहा था जैसे 2007 का टी-20 वर्ल्डकप का जश्न हो| बेवकूफी का अंदाजा तो अगले दिन सुबह लगा, जब अखबार में छपे देखा|
एक दिन और बीता, लोगों में सतर्कता ज्यादा दिखने लगी थी, शाम होते होते खबर आई, प्रधानमंत्री जी रात 8 बजे देश को फिर से संबोधित करेंगे…..परम और भाईसाहब जल्दी घर आ गए, चेहरे पर चिंता की लकीरें, देशभक्ति वाले भाव को दबा चुके थे|
घड़ी में 8:00 बजा…, प्रधानमंत्री जी आये और लॉकडाउन का सन्देश दे दिया, साथ ही कड़ाई से पालन की सीख भी| नयी पीढ़ी ने लॉकडाउन न कभी सुना था, न देखा था| बड़े- बुजुर्गों ने जरूर इमरजेंसी सुन रखी थी| सब चर्चा में लग गए पर परम की व्यथा या तो परम जनता था या उसके जैसे कुछ और जिन्होंने रस्म निभाने के चक्कर में नयी नवेली बीवी को मायके भेज दिया था| जैसे तैसे खाना खाया और अपने कमरे में आ कर जोर – जोर से टहलने लगा| क्या करें? कविता की कल ट्रेन है और न्यूज़ में दिखा रहा है कि सारी ट्रेनें कैंसल, सब कुछ ठप्प…| कार से चला जाऊं, बस बदल-बदल के चला जाऊं, हवाई जहाज़ का टिकट देख लूं जैसे सैकड़ों विचार उसके मन में घूम रहे थे कि तभी फ़ोन की घंटी बजी…| कविता का फ़ोन था, लपक कर फ़ोन उठाया और बिना रुके , “ये क्या हो गया? कैसे होगा? क्या करेंगे?” जैसे सवालों की झड़ी लगा दी| कविता की हालत भी कुछ वैसी ही थी पर उसकी आवाज़ में कुछ दृढ़ता दिखी, परम को ढाढस बंधाते हुए बोली, “परेशान मत हो कुछ न कुछ तो हल निकलेगा|”
हल क्या ख़ाक निकलता, सोशल मीडिया पर पिटाई के ऐसे ऐसे वीडियो वायरल होने लगे की जो हिम्मत कविता ने दिलाई थी सब धरी की धरी रह गयी| खैर आठ –दस फ़ोन लगाए पर सब ने ही तौबा कर ली| ऐसा लग रहा था जैसे पूरी कायनात परम को कविता से मिलने से रोक रही हो| परम की हालत गोलगप्पे की लाइन में लगे उस आदमी की तरह थी जो अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा हो और बारी आने से पहले चाट वाला बोले, “भइया जी मसाला ख़तम हो गया है थोड़ा रुकिए|”
झक मार के सारे ट्रेन टिकट, सारे होटल बुकिंग कैंसल करा दिए| अब तो बस जगजीत सिंह की ग़ज़लों का सहारा था, हालत यह हो गयी की न घर में मन लगता न बाहर| सामान्य परिस्थिति होती तो घरवाले ही बोलते जाओ कहीं घूम आओ पर समस्या की सारी जड़ ही लॉकडाउन था|
One reply on “शादी और लॉकडाउन (Shaadi aur Lockdown) Ch-2”
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