कहानी-तरकीब: श्रीलंका की लोक-कथा

काशुन और इसुरु की मित्रता ऐसी थी, जैसे दोनों एक शरीर दो जान हों । यदि एक को चोट लगती तो तकलीफ दूसरे को होती। वे दोनों बचपन से ही मित्र थे ।
उनकी मित्रता इतनी पुरानी और घनिष्ट थी कि लोग उसकी दोस्ती का मिसाल देते थे । काशुन और इसुरु बड़े हो गए थे और दोनों का अलग-अलग व्यापार था । एक दिन दोनों ने तय किया कि वे दोनों मिलकर व्यापार करेंगे ।
फिर दोनों ने मिलकर व्यापार शुरू कर दिया। उनका व्यापार चल निकला और दोनों खूब अमीर हो गए । वे ठाठ-बाट से रहने लगे। धीरे-धीरे एक समय आया कि दोनों का विवाह हो गया ।
उनको साथ-साथ व्यापार करते सात आठ वर्ष बीत चुके थे । तभी काशुन के मन में न जाने कहां से बेईमानी आ गई और वह व्यापार में हेरा-फेरी करने लगा । इसुरु बहुत सीधा और नेक इंसान था। उसे इस हेरा फेरी की भनक तक नहीं लगी। काशुन व्यापार में घाटा दिखाता जा रहा था । एक दिन ऐसा आया कि इसुरु उस व्यापार का भागीदार ही नहीं रहा। इसुरु ने ऐसा धोखा जिन्दगी में पहली बार खाया था ।
वह बहुत उदास रहने लगा और किसी से भी बात नहीं करता था । वह न हंसता था, न बोलता था । इस कारण उसकी पत्नी बहुत परेशान रहने लगी। एक तरफ तो घर में आर्थिक तंगी रहने लगी, दूसरी तरफ इसुरु बीमार रहने लगा ।
इसुरु की पत्नी नेथमी ने डॉक्टर-वैद्य से खूब इलाज कराया, किंतु कोई फायदा नहीं हुआ। किसी डॉक्टर को उसकी बीमारी समझ में नहीं आती थी। इसुरु दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था ।
दूसरी और काशुन अपने आप में मस्त था। उसने हेरा-फेरी करके खूब धन जमा कर लिया था । अब अपना अलग व्यापार करके खूब धन कमा रहा था। अपनी पत्नी के लिए उसने ढेरों गहने बनवा लिए थे । गांव के लोगों को काशुन की बेईमानी का खूब पता था, लेकिन कोई भी खुलकर सामने नहीं आता था ।
एक दिन इसुरु का चचेरा भाई लाहिरू शहर से आया । वह इसुरु की हालत देखकर हैरान रह गया । इसुरु की पत्नी ने चिन्तित होते हुए कहा, “देवर जी, अपने भैया का कुछ इलाज कराओ, हम तो गांव में इलाज करवा के हार गए, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ।”
लाहिरू ने नेथमी से इसुरु की हालत के बारे में विस्तार से जानकारी ली और बोला, “भाभी, इसुरु का इलाज डॉक्टर-वैद्य के पास नहीं है। उसका इलाज कुछ और ही है ।”
फिर लाहिरू ने नेथमी को बताया कि जब तक काशुन इसुरु से माफी नहीं मांगेगा, इसुरु ठीक नहीं होगा । परंतु नेथमी ने बताया कि काशुन अब बहुत धनी और घमंडी हो गया है, उसका माफी मांगना नामुमकिन है । हम लोग उसके सामने टिक नहीं सकेंगे ।
लाहिरू ने कहा कि मैं इस नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाऊंगा । मैं बिना धन के ही उसे नीचा दिखाऊंगा। उसने अगले दिन से ही अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया।
अगले दिन जब काशुन अपने घोड़े पर बैठकर दुकान जा रहा था तो उसने देखा कि एक आदमी उसकी तरफ देख कर जोर से हंस रहा है।
काशुन को लगा कि कोई यूं ही हंस रहा होगा। वह थोड़ी ही दूर गया था कि चार लोग खड़े आपस में बातें कर रहे थे। वह जैसे ही उन चारों के सामने से गुजरा, उनमें से एक ने उसकी ओर देख कर कुछ कहा कि सारे लोग जोर-जोर से हंसने लगे ।
काशुन को लगा कि सब लोग उसकी तरफ देखकर हंस रहे हैं। हो सकता है कि उसकी पगड़ी ढीली हो, उसने पगड़ी को ठीक करने का प्रयास किया तो घोड़े से गिरते-गिरते बचा ।
अपनी दुकान पहुंच कर ज्यों ही उसने दुकान का ताला खोला, एक छोटा-सा बालक उधर से जोर-जोर से हंसता हुआ गुजरा। काशुन को अब थोड़ा क्रोध आने लगा था। उसने बालक को बुलाकर पूछा – “ऐ लड़के क्यों हंसता है ?”
लड़के ने कहा – “यूं ही” और चला गया।
काशुन का मन दुकान में नहीं लग रहा था। उसे लगता था कि आज जरूर कहीं कोई गड़बड़ है। कभी वह शीशे में देखता, कभी अपने कपड़ों पर निगाह दौड़ाता, लेकिन उसे समझ न आता ।
दोपहर को एक दाढ़ी वाला व्यापारी उसकी दुकान पर आया और उससे बड़ी ख़रीदारी कर ली। लेकिन काशुन का ध्यान आज कहीं और था। उस दाढ़ी वाले व्यापारी ने दो -तीन बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा और काशुन की ओर देखकर जोर-जोर से हंसने लगा, फिर बोला – “सेठ, सौदा फिर कभी करूंगा ।”
काशुन को लगा कि उसकी दाढ़ी में कुछ लगा है, वह बार-बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरने लगा । जैसे-तैसे दिन बीता । आज उसका व्यापार में मन नहीं लगा था, इस कारण बिक्री भी कम हुई थी ।
घर जाकर काशुन ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई, वह सुनकर परेशान हो गई । उसके उसके कपड़ों, पगड़ी व दाढ़ी पर निगाह डाली, उसे सब कुछ ठीक-ठीक लगा ।
अगले दिन फिर जब वह कहीं काम से जा रहा था तो फिर उसने लोगों को कानाफूसी करते व हंसते देखा। अब उसे हर समय यही लगने लगा कि हो न हो, लोग उसकी बेईमानी की चर्चा कर रहे हैं। उसने दो-चार बार लोगों की बात सुनने की कोशिश की तो उसे अपने बारे में कोई भी शब्द सुनाई नहीं दिया ।
वह जहां जाता लोग हंसते दिखाई देते। उसने सोचा कि लोग यूं ही उसका मजाक बना रहे हैं, उसे उन सबको सबक सिखाना चाहिए। अगले दिन जब कोई व्यक्ति उस पर हंसा तो वह चिल्ला कर बोला – “पागल, पागल कहीं का ।”
उधर से उस व्यक्ति ने भी वही शब्द दोहरा दिए। सुनकर काशुन क्रोध से आगबबूला हो उठा। धीरे-धीरे एक सप्ताह में हालत यह हो गई कि वह जिधर से निकलता लोग कहते – “पागल, पागल कहीं का।” सुनकर वह बौखला उठता और सचमुच पागलों जैसी हरकतें करने लगता। उसका व्यापार मंदा पड़ने लगा। धीरे-धीरे उसकी हालत भी खराब होने लगी।
एक दिन गांव के जमींदार के बेटे की शादी थी। जमींदार ने सारे गांव के लोगों को दावत पर बुलाया । काशुन भी अच्छे कपड़े पहन सज-धज कर दावत खाने पहुंचा। लाहिरू भी वहां पहुंचा हुआ था।
जमींदार खुशी से लोगों से मिल रहा था और उनका अभिवादन कर रहा था। लाहिरू जमींदार के पास जाकर धीरे से बोला , “आप गांव के सबसे अमीर व्यक्ति से नहीं मिलेंगे। ये जो सामने दाढ़ी वाले सज्जन हैं, वो अपने आपको आपसे भी बड़ा जमींदार समझते हैं।”
जमींदार खुशी के माहौल में था। बात को मजाक में लेते हुए उसने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा फिर हंस कर काशुन की ओर देखा और बोला, “अरे यह तो बड़ा भला आदमी है।” फिर आगे बढ़ गया। काशुन को लगा कि वह व्यक्ति वही आदमी है जो पहले दिन उसे देखकर हंसा था। उसके बाद ही सब लोग उसकी तरफ देखकर हंसने लगे। हो न हो यह कोई राज की बात है, जो आज जमींदार भी हंस रहा है। वह व्यक्ति उसकी कोई शिकायत कर रहा है या उसकी दाढ़ी में कोई गड़बड़ है। उसने झट से अपनी दाढ़ी में हाथ फेरा और परेशान हो उठा ।
वह झट से लाहिरू से मिलने भागा, परंतु वह तब तक गायब हो चुका था ।
अगले दिन सुबह काशुन ने सबसे पहले दाढ़ी-मूंछें साफ करवाईं, फिर लाहिरू को ढूंढ़ने निकल पड़ा । उसके मन में जमींदार की बात जानने की बेचैनी थी । थोड़ी ही दूर जाने पर उसे लाहिरू जाता दिखाई दिया। उसने लाहिरू से रात की बात पूछी तो लाहिरू ने कहा – “मैं एक ही शर्त पर तुम्हें जमींदार की बात बता सकता हूं। तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी ।”
काशुन बोला – “भैया, धन मांगने के अलावा जो तुम कहो वही मानूंगा।” यह सुनकर लाहिरू काशुन को पास ही इसुरु के घर ले गया और बोला – “पहले इनसे माफी मांगो फिर बताऊंगा ।”
काशुन ने पलंग पर लेटे व्यक्ति से तुरंत माफी मांग ली, “भैया मुझे माफ कर दो।” तो वह व्यक्ति पलंग से उठ कर बैठ गया। उसके चेहरे पर पतली-सी मुस्कान की लकीर खिंच गई। काशुन यह देखकर हैरान रह गया कि वह उसका अपना मित्र इसुरु था। उसकी इतनी दुर्बल और बीमार हालत के कारण वह अपने बचपन के मित्र को पहचान नहीं सका था । उसे पश्चाताप होने लगा ।
तभी लाहिरू ने बताया कि जमींदार ने तो उसकी प्रशंसा की थी। लेकिन लाहिरू पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था। उसने अपने मित्र से अपने किए पर पुन: माफी मांगी और गले से लगा लिया ।
धीरे-धीरे इसुरु अच्छा होने लगा। दोनों में फिर दोस्ती हो गई फिर उनकी दोस्ती जीवन भर चलती रही ।
सीख : कभी किसी से छल न करो