टॉम और सौतेली मां: स्विट्ज़रलैंड की लोक-कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक शहर में एक आदमी रहता था। कुछ समय बाद उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। उसकी एक बेटी थी जिसका नाम टॉम था। पिता और बेटी दोनों आराम से रहते थे।
एक दिन उस आदमी ने दूसरी शादी करने का फैसला किया। उसकी शादी तो हो गई लेकिन उसकी दूसरी पत्नी बहुत चालाक निकली | कुछ ही दिनों में सौतेली मां ने टॉम के साथ बुरा बर्ताव करना शुरू कर दिया। वह टॉम से सारा दिन काम करवाती और एक पल के लिए भी उसे खाली नहीं बैठने देती थी। इस पर भी कई बार वह टॉम को खाना न देती और वह बेचारी बिना कुछ बोले भूखी सो जाती।
इधर टॉम की सौतेली मां के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम “काम” रखा गया। टॉम अपनी छोटी बहन से बहुत प्रेम करती थी। पर उसकी मां को यह भी अच्छा नहीं लगता था। वह जब टॉम को अपनी बेटी काम के साथ बैठे देखती, वह उसे गुस्से में कहती, “जाओ यहां से, सुबह से यहां बैठी क्या कर रही हो?”
कुछ दिनों बाद टॉम के पिता की मृत्यु हो गयी। अब तो उसकी मां का व्यवहार और भी खराब हो गया।
टॉम को इतने बड़े घर में रसोईघर के साथ वाला एक गन्दा-सा कमरा मिला हुआ था। वह वहीं उठती-बैठती और वहीं सोती। उसे दूसरे कमरों में जाने की मनाही थी। बस सफाई करने के लिए वह वहां जा सकती थी।
टॉम को बहुत काम करना पड़ता था। सारे घर की सफाई करती, कपड़े साफ करती, फर्श रगड़ कर धोती और सारे घर का भोजन बनाती । भैंस को नहलाना, चारा डालना, लकड़ी काटना, कुएं से पानी लाना जैसे बहुत से काम उस छोटी सी लड़की को करने पड़ते। काम करते-करते कई बार तो वह बहुत थक जाती, लेकिन किसी से शिकायत न करती।
एक दिन सौतेली मां ने टॉम और काम से कहा, “जाओ आज मछली पकड़ कर लाओ, जो टोकरी भर कर मछली नहीं लाएगी उसको मार पड़ेगी और रात को उसे भोजन भी नहीं मिलेगा।”
टॉम जानती थी कि यह चेतावनी केवल उसी के लिए है। काम को न तो मार पड़ सकती थी और न वह भोजन के बिना रह सकती थी।
टॉम सुबह से शाम तक नदी के किनारे बैठी रही। उसने मछलियों से अपनी टोकरी भर ली। परन्तु काम सारा दिन इधर से उधर घूमती रही। उसने सारा समय नाच-गाने और फूल तोड़ने में गवां दिया।
शाम होने तक काम ने मछली पकड़ना शुरू ही नहीं किया था। काम ने ज्यों ही अपनी बहन टाम की टोकरी मछलियों से भरी देखी, उसे एक तरकीब सूझी । वह बोली, “देखो बहन, तुम्हारा चेहरा धूल से भर गया है, तुम इस निर्मल जल में स्नान क्यों नहीं कर लेतीं। मां तुम्हारा इतना गंदा चेहरा देखेगी, तो क्या कहेगी?”
टॉम को यह सलाह अच्छी लगी। पर जैसे ही वह स्नान करने के लिए नदी में गई, काम ने उसकी मछलियां अपनी टोकरी में डाल लीं और टोकरी उठाकर जल्दी से घर चली गयी।
जब टॉम ने यह देखा कि उसकी मछलियां काम उठा ले गयी है तो वह बेचारी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
थोड़ी ही देर में उस नदी में से एक जलपरी निकली और टॉम से बोली, “क्या बात है, बेटी? इतनी ज़ोर-ज़ोर से क्यों रो रही हो?’
तब टॉम ने जलपरी से सारी कहानी कह सुनाई और बोली, “मेरी रक्षा करो। आज जब मैं घर जाऊंगी तो मेरी सौतेली मां मुझे बहुत मारेगी।”
जलपरी ने उसे हौसला दिया और कहा, “चिन्ता मत करो, बेटी, तुम्हारे कष्ट के दिन दूर होने वाले हैं। तुम्हारी टोकरी में मैंने एक सुनहरी आंखों वाली मछली रख दी है, इस मछली को अपने घर के पास वाले कुएं में डाल देना। बस, फिर इससे तुम जो मांगोगी, वह मिल जाएगा।”
टॉम ने जलपरी को धन्यवाद दिया और घर जाकर उस मछली को अपने कुएं में छोड़ दिया। उस रात उसकी सौतेली मां ने उससे कुछ नहीं कहा।
जब टॉम उस कुएं पर पानी भरने जाती, तो वह मछली उसे दिखाई देती और उससे बातें भी करती। लेकिन जब कोई और जाता, तो वह मछली पानी में छिप जाती।
टॉम की सौतेली मां को थोड़ा शक होने लगा कि इस कुएं में जरूर कोई है, जिससे टॉम अकेले में बातें किया करती है। एक दिन टॉम को किसी काम से दूर भेज दिया।
टॉम की अनुपस्थिति में, उसकी मां ने कुएं से उस मछली को निकाल लिया। टॉम के लौटने से पहले ही उसकी मां ने उस मछली को पका कर खा भी लिया।
जब टॉम लौटी तो वह कुएं पर गयी। वहां पहुंचकर वह मछली को बुलाने लगी। पर मछली ने कोई जवाब नहीं दिया। मछली वहां थी ही नही। टॉम वहीं कुएं की दीवार से सिर पटक-पटक कर रोने लगी।
फिर वहां जलपरी आयी और बोली, “बेटी, चुप हो जाओ, रोने से कुछ न होगा। उस मछली को तुम्हारी सौतेली मां खा गयी है। उसने मछली की हड्डियां सामने के मैदान में फेंक दी हैं। तुम हड्डियों को उठाकर अपने कमरे में गाड़ दो, फिर तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा।”
टॉम ने वैसा ही किया। मछली की हड्डियों को गाड़ने के तुरन्त बाद ही टॉम को मोतियों से जड़ी एक फ्रॉक और जूती मिल गये।
अगले दिन एक त्योहार था। त्योहार में लाखों लोग इकट्ठे होकर झूला झूलते और खुशियां मनाते थे। परन्तु उस दिन सुबह ही टॉम को घर बैठने का हुक्म मिल गया था। उसकी सौतेली मां ने चने और चावल से भरी दो बड़ी-बड़ी टोकरियों को जान-बूझकर आपस में मिला दिया। वह टॉम को मेले में नहीं ले जाना चाहती थी। उसे विश्वास था कि न यह काम समाप्त होगा और न वह मेले में जा सकेगी। वह टॉम से बोली, “टॉम, तुम घर बैठकर चने और चावल के दानों को अलग-अलग करो। घबराने की कोई बात नहीं। थोड़ी देर का काम है, जल्द खत्म करके मेले में आ जाना।”इतना कहकर दोनों मां-बेटी सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहन कर मेले में चली गयीं ।
उनके जाने के बाद टॉम की आँखों में आंसू आ गये। उस मेले में वह भी सज-धज कर जाना चाहती थी। वह मन-ही-मन कई बार सोचती कि जब हम दोनों ही एक पिता की बेटी हैं, तो उसमें और मुझमें इतना अन्तर क्यों ?टॉम ने रोते हुए कहा, “हे जलपरी, मेरी मदद करो।”
तभी वहां सैकड़ों चिड़ियां इकट्ठी हो गईं। सभी चिड़ियों ने थोड़ी ही देर में चने और चावल को अलग-अलग कर दिया। टॉम फ़ौरन मेले में जाने के लिए तैयार हो गयी। उसने वही मोतियों लगी फ्रॉक और जूतियां पहनी, जो उसे कल मछली की हड्डियों को गाड़ने के बाद मिले थे। उस फ्रॉक में टॉम बिलकुल राजकुमारी लग रही थी।
जैसे ही टॉम मेले में पहुंची, काम उसे देखकर बड़ी हैरान हुई। वह अपनी मां के कानों में कहने लगी, “देखो मां, कितनी सुंदर लड़की है। ऐसा लगता है मानो कोई राजकुमारी हो। इसकी शक्ल बहुत कुछ हमारी बहन टॉम से मिलती है।”
उधर जब टॉम ने देखा कि उसकी सौतेली मां और काम उसकी ओर धूर-घूर कर देख रही हैं, तो वह वहां से भागने लगी। जल्दी में उसकी एक जूती गिर गई। उस जूती को वहां घूमते हुए सिपाहियों ने उठा लिया और जाकर अपने राजा को दे दिया।
राजा ने उस जूती को बड़े गौर से देखा। जूती बहुत खूबसूरत थी। राजा ने इससे पहले कभी इतनी सुन्दर जूती नहीं देखी थी। राजा ने उसी समय सैनिकों को बोला कि जिस किसी की भी यह जूती हो उसे ले आओ। सैनिक घोड़ों पर चढ़कर मेले में पहुंचे और टॉम को पकड़कर राजा के पास ले आये।
राजा ने जैसे ही टॉम को देखा, उसी क्षण उसने टॉम को अपनी रानी बनाने का निर्णय कर लिया।
दोनों का विवाह हो गया। टॉम आराम से राजमहल में रहने लगी। अब उसे किसी बात की चिन्ता नहीं थी।परन्तु उसकी सौतेली मां और काम को इस घटना से बहुत दुख हुआ। वह दोनों टॉम को मार देना चाहती थीं, परन्तु राजा से डरती थीं।
कुछ दिनों बाद ही टॉम के पिता का मृत्यु-दिवस मनाया गया। टॉम को अपने घर जाना पड़ा।
टॉम को घर में देख, पहले तो उसकी सौतेली मां बनावटी हँसी हँसती रही और कहती रही, “मेरी बेटी बहुत अच्छी जगह पहुंच गयी है। भगवान तुम दोनों की लम्बी उम्र दे।”
फिर थोड़ी देर बाद चेहरे पर गम्भीर भाव लाकर कहने लगी, “आज के दिन मैं गरीबों को नारियल देना चाहती हूं। कितना अच्छा हो कि तुम खुद ही नारियल तोड़कर गरीबों को दे दो ।”
टॉम बड़ी खुश होकर नारियल के पेड़ पर चढ़ गयी। जैसे ही टॉम ऊपर पहुंचकर नारियल तोड़ने लगी सौतेली मां ने नीचे से पेड़ काट दिया।
सौतेली मां मन ही मन बहुत खुश थी, पर बाहर आंखों से बनावटी आंसू भी गिर रहे थे। वह रोती-रोती राजा के पास पहुंची। वहां जाकर वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, “महाराज, मैं लुट गयी! मेरी बेटी नारियल के पेड़ से गिरकर मर गई। हे भगवान, तुमने मुझे क्यों न उठा लिया?”राजा को टॉम के मर जाने का बहुत दुख हुआ।
“विनाश काले विपरीत बुद्धि’ वाली कहावत टॉम की सौतेली मां पर भी सटीक बैठती थी। टॉम उस पेड़ से गिरकर बेहोश हो गयी थी, उसकी मृत्यु नहीं हुई थी।
टॉम को एक बूढ़ी स्त्री उठाकर अपने घर ले गयी। उस बूढ़ी स्त्री की कोई संतान नहीं थी। उसने अपनी सारी पूंजी लगाकर टॉम का इलाज करवाया। टॉम कुछ ही दिन में ठीक हो गयी।
उधर, सौतेली मां चाहती थी कि किसी तरह राजा उसकी बेटी काम के साथ विवाह कर ले और उसकी बेटी रानी बन जाए। राजा ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की और काम से विवाह कर लिया।
एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गया। शिकार खेलते-खेलते रात हो गई राजा रास्ता भटक गया और उसने जंगल में ही रात बिताने का निर्णय किया। आस-पास कोई मकान या सराय भी नहीं थी। राजा को दूर रौशनी दिखायी पड़ी। वह उसी ओर चल दिया । वहां पहुंचकर उसने दरवाजा खटखटाया। बूढ़ी स्त्री ने दरवाज़ा खोल दिया।
राजा बोला, “मैं राजा हूं, शिकार खेलते-खेलते रात हो गयी। यदि तुम आज रात मुझे यहां ठहरने दो, तो तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी। मैं सुबह होते ही यहां से चला जाऊंगा।”उस स्त्री ने राजा को अन्दर बिठा लिया। यह वही घर था, जहां टॉम रहती थी।
उस स्त्री ने राजा को भोजन कराया। भोजन बड़ा ही स्वादिष्ट था और उसमें भी केवल वही पदार्थ बनाये गये थे, जो राजा को बहुत अच्छे लगते थे।राजा ने उस स्त्री से पूछा, “माता जी, यह भोजन किसने बनाया है?”“मेरी बेटी ने।” उस स्त्री ने जवाब दिया।“कहां है तुम्हारी बेटी?” राजा ने पूछा।बूढ़ी स्त्री ने टॉम को राजा के सामने कर दिया और कहा, “यह रही मेरी बेटी।”राजा टॉम को दुबारा देखकर बहुत खुश हुआ। टॉम ने सारी बात राजा से कह सुनाई।राजा ने काम और उसकी मां को जेल में डाल दिया।
अब उसकी सौतेली मां और काम को पता चला कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं।