कहानी – इंसान बूढ़े क्यों हो जाते है? (Why Human Get Old?)-दक्षिण अफ्रीका की लोक कथा

देर शाम एक बुढ़िया बैठी आकाश को ताक रही थी| “सुनो दादी!” मेथम्बे बोला| वह इतना चंचल था कि कभी एक जगह टिकता ही नहीं था| उसने देखा की सूरज ढलने लगा है तो अपनी दादी से बोला, “चलो वापस चलते हैं|” बूढ़ी दादी ने धीरे से सर हिलाया और जोर लगा कर उठने लगी| “हम….”, उन्होंने मन ही मन सोचा, “इतनी उमर हो गई, शायद मैं आगे ढलता सूरज देखने नदी किनारे न आ पाऊं|” जब तक बूढ़ी दादी अपने गाँव पहुँचती, और बच्चों ने सूखे कपड़े तह करके रख दिए थे और लकड़िया भी इकठ्ठा कर दिया था| सभी बच्चे अब घेरा बना कर बैठ गए थे, कुछ बड़े बच्चे उचक – उचक कर देख रहे थे कि घर के बुजुर्ग खाना खा लें तो वह भी भोजन करें|
जब सभी भोजन कर चुके तो बूढ़ी दादी और सभी बच्चे आग के चारो ओर घेरा बना कर बैठ गए| “दादी….” छोटा मेथम्बे आग को गौर से देखते हुए बोला| “दादी, लोग बूढ़े क्यों हो जाते हैं? और बूढ़े हो कर मर क्यों जाते हैं?” बूढ़ी दादी ने प्यार से अपने पोते को देखा, वह समझ रही थी बेचारा क्यों ऐसा सवाल कर रहा है|
“हम्म….ऐसा है मेरे प्यारे बच्चे,” बूढ़ी दादी ने खुद भी आग को देखते हुए कहा, “यह बहुत ही मज़ेदार कहानी है, क्या तुम सुनना चाहोगे, क्यों इंसान बूढ़े हो कर मर जाते हैं?”
“हाँ दादी सुनाओ ना!”, सभी बच्चे एक साथ बोल उठे|
“ठीक है बच्चों….” और बूढ़ी दादी शुरू हो गईं, “एक बार की बात है….”
परमात्मा, इस सृष्टी के रचयिता जब सारी रचना कर चुके तो एक दिन वह देर तक दुनिया को देख रहे थे| वह मन ही मन मुस्कुराए कि दुनिया बहुत ही ख़ूबसूरत बन गयी है, खास तौर पर जो इंसान उन्होंने बनाया था, उसे देख कर वह बहुत खुश थे, आखिरकार वह देखने में उनके जैसा ही था| वह बोले, “वाकई यह ख़ूबसूरत है, बहुत बढ़िया बना है|”
लेकिन जैसे- जैसे समय बीतता गया उन्होंने देखा कि इंसान एक दूसरे से लड़ने लगे और एक दूसरे को चोट पहुंचाने लगे | उनके घाव तो भर जाते पर चोट के निशान उनके शरीर पर रह जाते, इसके चलते इंसान बूढ़े दिखने लगे| परमात्मा ने सोचा, “इंसानों की यह खाल पुरानी हो रही है, अब समय आ गया है, मुझे कुछ करना होगा और उन्हें नई खाल देनी होगी|
परमात्मा ने गिरगिट को अपने पास बुलाया और बोले, “सुनो गिरगिट, मेरे पास एक पैकेट है और मैं चाहता हूँ कि तुम इसे इंसानों को दे आओ| यह बहुत की ज्यादा ज़रूरी है तो इसमें देरी बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए| बिना रुके इंसानों के पास जाओ, उन्हें यह पैकेट देना और कहना कि तुम परमात्मा की तरफ से आए हो और यह पैकेट उन्होंने भेजा है|”

इतना कह कर उन्होंने एक छोटा पैकेट गिरगिट को थमा दिया और बोले, “गिरगिट मुझे तुम पर विश्वास है, तुम बेहद वफादार और फुर्तीले हो, अब फ़ौरन जाओ|”
गिरगिट परमात्मा की इच्छानुसार तुरंत ही निकल गया| उन दिनों गिरगिट बिजली की तरह तेज़ हुआ करते थे, वह तेज़ गति से धरती की ओर चल दिया, पैकेट उसने अपनी कांख में दबा रखा था| जब वह महान नदी के पास से गुजर रहा था तो उसने थोड़ा आराम करना चाहा, वह रुक कर पानी पीने लगा| यही उसकी बहुत बड़ी भूल थी…..|
एक साँप भी वही पास में नदी के किनारे पानी पी रहा था, “क्या बात है मेरे भाई.” साँप फुंफकारते हुए बोला, “लगता है तुम बड़ी जल्दी में हो….कहाँ की तैयारी है?”
गिरगिट ने गर्दन उठाई और बोला. “हाँ भाई, परमात्मा ने मुझे एक पैकेट इंसानों तक पहुँचाने को दिया है, शायद इसमें इंसानों के लिए कुछ होगा….|”
साँप वैसे भी इंसानों से चिढ़ता था, इंसान इतने ऊँचे होते हैं फिर भी ज़मीन पर चलते हुए हमारा ख्याल नहीं करते, कभी हम पर तो कभी हमारे परिवार पर चढ़ते रहते हैं और परमात्मा भी उन पर ही ज्यादा महरबान रहते हैं| साँप इंसानों से बहुत घृणा करता था और जब उसे पता चला कि गिरगिट परमात्मा का दिया हुआ उपहार इंसानों के लिए ले जा रहा है तो उसने छल करने की सोची, जिससे वह इंसानों तक न पहुंचे|
“मेरे प्यारे भाई गिरगिट,” साँप ने गिरगिट के नज़दीक आते हुए बोला, “तुम्हे दोबारा देख कर बेहद ख़ुशी हुई, तुम तो मिलते ही नहीं हो, हमारे और सभी भाई बंधु तो घर आते हैं, पर तुम्हारे पास हमारे लिए समय ही नहीं है| सब जब सुनेंगें कि तुम आए थे और मिले नहीं तो सबको लगेगा की तुम हम सब में घुलना नहीं चाहते|”

गिरगिट बेचारा सीधा साधा था, उसे लगा कि साँप अगर बता देगा कि वह आया था और बिना मिले चला गया तो सब बुरा मान जाएँगे| “नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है भाई, मैं तुम सब का बड़ा आदर करता हूँ, फिर कभी ज़रूर खाना खाने आऊंगा|”
“तो ठीक है…….साँप फ़ौरन बोल उठा| “अभी चलते हैं, तुम्हारी भाभी ने खाना बना ही लिया होगा, तुम भी साथ खा लेना, उसको भी अच्छा लगेगा|”
“ऐसा है भाई…..” गिरगिट अपनी कांख में दबे पैकेट को देखते हुए बोला| “अभी तो मुझे फ़ौरन ही परमात्मा का यह पैकेट पहुंचना है, मैं फिर कभी आऊंगा|”
“क्यों नहीं,” साँप नाराज़ होने का दिखावा करते हुए बोला| “मुझे लगा ही था, तुम हम लोगों से मिलना जुलना ही नहीं चाहते, जाओ जाओ अपना ज़रूरी काम करो|”
गिरगिट ने आकाश की ओर देखा, सूरज अभी भी सर पर ही था| वह साँप के साथ दोपहर का भोजन कर आराम से पैकेट पहुंचा सकता था| उसे लगा वह कुछ ज्यादा ही रूखा बोल गया| “रुको साँप भाई!” गिरगिट फ़ौरन ही बोला| “मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, मुझे माफ़ कर देना| मुझे तुम्हारे परिवार के साथ भोजन करने में मज़ा आएगा, चलो मैं तुम्हारे परिवार के पास चलता हूँ, यह पैकेट मैं भोजन के बाद पहुंचा दूंगा|”
साँप के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आई और वह गिरगिट की ओर मुड़ा| “प्यारे गिरगिट भाई,” साँप बहुत ही शालीनता से बोला, “यह तो तुम्हारा बड़प्पन है जो तुमने मेरा निमंत्रण स्वीकार किया, आओ चलते हैं|” यह बोलते हुए साँप गिरगिट के साथ अपने बिल की ओर चल दिया|
उधर साँप की पत्नी ने रोज़ की तरह काफी कुछ बना रखा था, जब उसने गिरगिट को देखा तो बहुत खुश हुई, आखिर कोई उसके घर खाने पर आया था| उसने गिरगिट की खूब आव-भगत की और उसे भर पेट भोजन कराया| गिरगिट ने भी छक कर खाया, खाना वाकई स्वादिष्ट था| गिरगिट खातिरदारी और स्वादिष्ट खाने के चक्कर में अपना ज़रूरी काम लगभग भूल ही गया| साँप ने जब देखा कि गिरगिट ऊँघ रहा है और उसकी पलकें नींद से बोझिल हो रही हैं, तो वह मन ही मन मुस्काया और जैसे ही गिरगिट नींद में आ गया साँप धीरे – धीरे हँसने लगा|
“इसमें हँसने की क्या बात है पति देव?” साँप की पत्नी ने पूछा| वह जानती थी कि अक्सर लोग अधिक खाने के बाद सो ही जाते हैं| उसको इसमें कुछ भी हँसने योग्य न लगा, यद्यपि उसे लगा कि उसने मेहमान की अच्छी खातिरदारी की है|
“इसे देखो,” साँप ने धीरे से पैकेट उठाते हुए बोला|
“यह क्या है?” उसकी पत्नी ने पूंछा |
“परमात्मा की तरफ से हमारे लिए एक उपहार”, साँप हँसते हुए बोला और यह कहते हुए उसने पैकेट खोल दिया| “यह देखो.” उसने पैकेट से कुछ उठाते हुए कहा, “परमात्मा ने हमारे लिए नई खाल भेजी है| नई खाल इसलिए की जब हम बूढ़े हो जाए तो पुरानी खाल उतार दें और नई खाल पहन लें|” यह कहते हुए साँप जोर से हँसा, इतनी जोर से की गिरगिट की नींद टूट गई| गिरगिट ने जैसे ही खुला पैकेट देखा वह समझ गया|
“साँप भाई” गिरगिट घबराते हुए बोला| “यह पैकेट तुम्हारे लिए नहीं है, यह तो इंसानों के लिए है| तुमको तो पता है, लाओ मुझे वापस दे दो|” गिरगिट ने अपने हाथ बढ़ाए और फिर से बोला, “प्यारे भाई, ज़िद न करो, वापस दे दो|”
लेकिन साँप ने एक न सुनी और गिरगिट की पहुँच से ऊपर रखते हुए हँसता रहा| “नहीं मेरे भाई, अब यह मेरी खाल है|” यह कहता हुआ साँप वहाँ से चला गया|
शाम होते होते गिरगिट अपने साथ हुए धोखे और अपनी नादानी से दुखी था| वह परमात्मा से बचने के लिए झाड़ियों में छुप गया और बहुत धीरे धीरे अपने हाथ पैर हिलाता जिससे किसी को उसकी आहट न हो| वह परमात्मा से बहुत डरा हुआ था|
“तो समझे प्यारे बच्चों”, बूढ़ी दादी ने कहानी ख़तम करते हुए कहा| “इस तरह से साँपों ने इंसान को धोखा दे कर अपने पास नई खाल रख ली और जब वो बूढ़े होते है तो अपनी पुरानी खाल उतर कर नई पहन लेते हैं|”
“लेकिन दादी यह तो अच्छी बात नहीं है”, मेथम्बे दुखी मन से बोला| “परमात्मा को चाहिए की वह साँपों से खाल ले कर इंसानों को वापस दिलवाएं|”
“ज़िन्दगी हमेशा एक सी नहीं होती मेरे बच्चे, जहाँ साँपों को नई खाल मिल गई, इंसान भी तो साँपों से बदला लेने के लिए उन्हें मारते रहते हैं और गिरगिट तो शर्म के मारे आज भी डर- डर कर चलता है, और छिपता फिरता है, रही बात इंसानों की तो परमात्मा ने उन्हें खाल से भी बेहतर उपहार दिया है|”
बच्चों ने पूछा, “दादी वह क्या है?” “प्यारे बच्चों, “बूढ़ी दादी मुस्कुराते हुए बोली , “वह कहानी फिर कभी|” अब मेरी बूढ़ी हड्डियाँ कह रहीं है की सोने का समय हो गया है, “शुभ रात्रि बच्चों”, यह कहते हुए बूढ़ी दादी धीरे-धीरे अपनी झोपड़ी की ओर चल दी|
सीख: (1): हमेशा सूझ-बूझ से काम लो | (2): कभी किसी के बहकावे में न आओ|
हिंदी रूपांतरण: स्वप्निल श्रीवास्तव (इशू)