कहानी-हृदय परिवर्तन: इंडोनेशिया की लोक कथा

बन्दुंग का राजा बोगोर शूरवीर और पराक्रमी था । उसका साम्राज्य दूर-दूर तक फैला था । वह प्रतिदिन शाम को एक अदालत लगाता था, जिसमें जनता की समस्याओं को सुनता था । उसका हमेशा यही प्रयास रहता था कि उसके राज्य में सभी सुखी हों । वह उनकी परेशानियों को दूर करने का हर संभव प्रयास करता था ।
सारी जनता अपने राजा को बहुत पसंद करती थी । राजा दीन-दुखियों की सेवा करना अपना धर्म समझता था । जरूरतमंदों को रोटी-कपड़ा तथा धन दान में दिया करता था । किसी को अपने राजा से किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी । सारे राज्य में सुख-शांति थी ।
राजा ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए हाथी-घोड़ों की अच्छी सेना तैयार कर रखी थी । राजा स्वयं भी घुड़सवारी का बेहद शौकीन था । उसका एक प्रिय घोड़ा था जिसका नाम था – रेव । राजा बोगोर अपने प्रिय मित्र तथा मंत्री सोपाल के साथ अक्सर घुड़सवारी करने जाया करता था । रेव का जैसा नाम था, वैसी ही उसकी तेज चाल थी । वह जब दौड़ता, तो यूं लगता था कि वह हवा में उड़ रहा हो । उसकी तेज गति व ऊंची कद-काठी की दूर-दूर तक चर्चा थी । राजा रेव को अपने पुत्र के समान प्यार करता था ।
राज्य के जंगलों में कुछ कुख्यात डाकुओं ने डेरा जमा रखा था उन डाकुओं का सरदार जबारी था । जबारी जहां भी जाता, आतंक फैल जाता था । लोग उसके नाम से डरते थे । राजा के सिपाहियों को जब भी डाकुओं के हमले की खबर मिलती, वे तुरंत वहां पहुंच जाते थे । परंतु जब तक डाकू लूट- पाट करके जा चुके होते थे ।
सिपाहियों ने जंगलों में डाकुओं को खोजने का कई बार निष्फल प्रयास किया । राजा चाहता था कि डाकुओं को पकड़कर उन्हें मौत की नींद सुला दिया जाए ताकि राज्य में किसी प्रकार की अशांति न रहे ।
एक बार राजा के शाही मेहमानखाने में एक मेहमान ठहरा । उसकी खूब खातिरदारी की गई । तीसरे दिन जाते वक्त मेहमान ने राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की तो सिपाहियों ने राजा के पास सूचना पहुंचा दी । राजा ने मेहमान को अपने पास बुलाया |
मेहमान बोला – “मैंने सुना है कि आप अपनी जनता की सारी जरूरतों व इच्छाओं को पूरा करते हैं, क्या यह सही है ?”
राजा बोला – “क्या आपको लगता है कि आपकी खातिरदारी में कोई कमी रह गई है । आप मुझे बताएं मैं आपकी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा ।”
मेहमान बोला – “हमारा घर तो जंगलों की तरफ है, वहां हमें धन और अन्न की सदैव ही कमी रहती है ।”
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया – “दस बोरों में अनाज और ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं मेहमान को भेंट कर दी जाएं । हम नहीं चाहते कि हमारे राज्य में किसी को किसी प्रकार की परेशानी हो ।”
तभी मेहमान बोला – “हमारे यहां घोड़ों की भी बहुत जरूरत रहती है । आने-जाने के लिए जितने भी घोड़े हों, कम रहते हैं ।”
राजा बोला – “आप हमारे मेहमान हैं । आपने आज हमसे कुछ मांगा है, हम आपको घोड़ा अवश्य देंगे ।”
तभी राजा से सैनिक को आदेश दिया कि एक ऊंचे कद का अच्छा घोड़ा मेहमान की सेवा में पेश किया जाए । लेकिन मेहमान बीच में ही टोकते हुए बोला – “महाराज, मुझे और कोई घोड़ा नहीं केवल रेव चाहिए । यदि आप मुझे वह घोड़ा दे सकें तो फिर मुझे और कुछ नहीं चाहिए । यह धन-दौलत आप गरीबों में बांट दें ।”
राजा बोगोर ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा – “क्या आप जानते हैं कि आप क्या मांग रहे हैं, रेव मेरा घोड़ा नहीं, मेरे पुत्र के समान है ।”
मेहमान बोला – “अच्छी तरह जानता हूं कि रेव आपका प्रिय घोड़ा है । उसकी कद-काठी, रूप-रंग की भी खूब चर्चा सुनी है, इसी कारण मैं रेव को पाना चाहता हूं ।”
मेहमान की बात सुनकर राजा असमंजस में पड़ गया । उसे मेहमान की बात पर भीतर ही भीतर क्रोध भी आ रहा था, परंतु वह समझ नहीं पा रहा था कि मेहमान को रेव के लिए कैसे मना करे । राजा को चुप देखकर मेहमान बोला – “रहने दीजिए, मैं आपका घोड़ा रेव एक दिन खुद ही हासिल कर लूंगा ।” फिर मेहमान ने अपनी पगड़ी सिर से उतार ली और कड़क आवाज में बोला – “आपकी जिन्दादिली की चर्चा सुनी थी, इस कारण चला आया । खैर… मेरा नाम जबारी है । अब मुझे आपसे न आपका घोड़ा चाहिए और न ही धन-दौलत । इसे मैं अपने बलबूते पर हासिल कर लूंगा ।”
राजा एकदम चौकन्ना हो गया और जोर से चिल्लाया – “डाकू जबारी, पकड़ो इसे, यह जाने न पाए ।”
परंतु जबारी तो पहले ही तैयार खड़ा था । वह झट से बाहर कूदा और पहले से तैयार अपने घोड़े पर रफूचक्कर हो गया । राजा के सिपाही जबारी के पीछे दौड़े, परंतु वह कुछ ही क्षणों में आंखों से ओझल हो गया और सिपाही देखते रह गए ।
इसके पश्चात् राजा बहुत चौकन्ना रहने लगा । उसने रेव की देखभाल के लिए कई पहरेदारों का इन्तजाम कर दिया । ये सिपाही दिन-रात रेव के आस-पास पहरा देते थे ।धीरे-धीरे कुछ माह बीत गए, लेकिन कोई घटना नहीं घटी । राजा और सिपाही निश्चिंत हो गए कि यह डाकू जबारी की गीदड़ भभकी थी, जो पूरी नहीं हो सकी । यद्यपि राजा ने रेव के पास से पहरेदारों को नहीं हटाया था ।
एक दिन राजा बोगोर अपने मित्र सोपाल के साथ सुबह के समय घुड़सवारी करने निकला । दोनों लोग काफी देर घोड़ा दौड़ाते रहे । जब दोनों थकने लगे तो दोनों ने लौटने का फैसला किया ।
दोपहर ढलने लगी थी, तभी राजा बोगोर की निगाह एक आदमी पर पड़ी जो दर्द से कराह रहा था और जिसके शरीर से खून बह रहा था । राजा ने सोपाल से उस ओर इशारा किया और दोनों लोग अपने घोड़ों से उतर कर उस आदमी के पास गए तो वह आदमी तेजी से उठ कर खड़ा हो गया, उसके हाथ में पिस्तौल थी । राजा ने ध्यान से देखा कि यह वही आदमी है जो उसके यहां मेहमान बनकर आया था और स्वयं को डाकू जबारी बता रहा था ।
राजा कुछ बोलता, इससे पहले ही वह कूद कर रेव पर सवार हो गया । एक पेड़ के पीछे छुपा हुआ एक व्यक्ति निकल कर आया और झट से सोपाल के घोड़े पर जा बैठा । डाकू जबारी बोला – “मैंने जो वादा किया था, वह पूरा कर रहा हूं । आपका घोड़ा छीनकर ले जा रहा हूं ।”
राजा के कुछ कहने के पहले ही जबारी व उसके साथी ने घोड़ों को दौड़ाने के लिए एड़ लगाई, लेकिन रेव अपने मालिक को पहचानता था । उसने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । रेव ने अपनी अगली दोनों टांगें ऊपर उठाकर जोर से झटका मारा और जबारी नीचे आ गिरा । इतने में सोपाल के घोड़े ने भी जबारी के साथी को नीचे गिरा दिया । बोगोर यह तमाशा देख रहा था, परंतु कुछ बोला नहीं । इतने में जबारी और उसके साथी ने कई बार घोड़े पर चढ़कर भागने का प्रयास किया परंतु घोड़े ने दुलत्ती मार कर डाकुओ के प्रयासों को निष्फल कर दिए ।
तभी राजा बोगोर डाकू जबारी के पास आया और बोला – “तुम जानते हो कि मैं रेव को बेटे के समान प्यार करता हूं, फिर भी तुम इसे छीनकर ले जाने का प्रयास कर रहे हो । मैं तुम्हें रेव को सौंप देता हूं परंतु याद रखना कि तुम मेरे घोड़े को नहीं मेरे पुत्र को लेकर जाओगे । यदि कभी भविष्य में तुम अपने बेटे से बिछड़े तो यह दर्द अवश्य महसूस करोगे ।”
यह कहकर बोगोर ने घोड़े की पीठ पर हाथ फेरा मानो उसे जबारी के साथ जाने की अनुमति दे रहे हों । रेव अपने मालिक की बात समझ गया और जबारी को लेकर चला गया ।
अपने ठिकाने पर पहुंचकर डाकू जबारी बार-बार सोचता रहा । उसके सामने उसकी पत्नी उसके छ: मास के बच्चे को स्तनपान करा रही थी । आज न जाने क्यों जबारी का पत्थर दिल मोम जैसा पिघला जा रहा था । वह बार-बार अपने पुत्र को प्यार करने लगा और राजा की बात याद करने लगा । उसे आज महसूस हुआ कि यदि वह अपने पुत्र से जुदा हो गया तो वह उस दुख को बरदाश्त नहीं कर सकेगा । उसकी पत्नी तो पुत्र बिछोह में रो-रोकर पागल हो जाएगी ।
जबारी सोचने लगा कि वह आज तक अनगिनत लोगों की जान ले चुका है, उन्हें लूट चुका है । उन्हें घायल कर चुका है । वे सब भी तो किसी के पुत्र या पिता होगें । उन लोगों ने यह बिछोह कैसे बरदाश्त किया होगा ? डाकू जबारी रात भर यही सोचता रहा और ठीक प्रकार सो न सका । उसका हृदय परिवर्तन होने लगा ।
सुबह होते ही वह अपने साथियों के साथ राजमहल पहुंच गया । अपने हथियार राजा को सौंपकर उसने आत्मसमर्पण कर दिया । राजा का घोड़ा रेव राजा के सैनिकों को सौंप दिया । वह राजा से बोला – “महाराज, आपने अपना बेटे जैसा घोड़ा रेव मुझे सौंपकर मेरे मन को झकझोर कर रख दिया है । आज तक मुझे एहसास ही न था कि मैं कितने बाप-बेटों को एक दूसरे से अलग कर चुका हूं । आज मुझे अपने किये पर पश्चाताप है और मैं उसकी सजा भुगतने को तैयार हूं । आप वास्तव में महान हैं । ईश्वर ने आपको राजा बनाकर इसीलिए धरती पर भेजा है कि आप हम सबका उद्धार कर सकें ।”
डाकू जबारी भावावेश में बोलता जा रहा था । राजा ने कहा – “जबारी, सबसे बड़ी बात यह है कि तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है, मैं तुम्हारी सजा माफ करता हूं और अपनी सेना का सेनापति तुम्हें नियुक्त करता हूं । मैं चाहता हूं कि तुम अपनी शक्ति का प्रयोग सही दिशा में करो और अपने देश की रक्षा करो ।”
सारे लोग राजा बोगोर की ओर अचरज भरी नजरों से देख रहे थे । राजा का न्याय सुनकर सभी के होंठों पर खुशी की लहर दौड़ गई और वे राजा के आगे नतमस्तक हो गए ।
अचानक सभा में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी और लोग राजा की जय-जयकार करने लगे ।