अब तक आप ने पढ़ा कैसे हँसमुख स्वभाव का मंदार अपने ऑफिस के ही अधिकारी के साथ उनके जन्मदिन पर भावुक हो जाता है|बेहद नशे में वो उनके प्यार से मिलाने उन्हें ले जाता है|…किस्मत कुछ ऐसा मोड़ लेती है कि मंदार की पत्नी ही दिवाकर उर्फ़ बड़े-बाबू की प्रेमिका निकलती है, अब आगे….
भाग 8:प्यार का पंचनामा (Ch8: Pyar Ka Panchnama)
मुर्दाघर की एक बेंच पर बेसुध सा बैठा मंदार अपनी पूरी कहानी सुना चुका था| सुबह होने को थी और मंदार का नशा पूरी तरह उतर चुका था….बगल में सब इंस्पेक्टर महिपाल चौधरी और सामने खड़ा हवलदार मनोज यादव मंदार की कहानी सुन चुके थे, पूरी रात तफशीश हुई थी|

महिपाल चौधरी मनोज से पूछता है, “बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी क्या?”
मनोज हां में सर हिलाता है और बोलता है, “सर आधा घंटा और लगेगा..रिपोर्ट 3-4 बजे तक मिल जाएगी”
महिपाल सर झटक कर नींद भगाता है और वापस मंदार की ओर मुड़ता है, “हाँ भाई, क़त्ल की जानकारी कैसे हुई..?”
मंदार आँखों में आसूं लिए बोलता है, “सर पाली से जब हम वापस आए तो सभी उदास थे…पूरे रास्ते एक दूसरे से बात तक नहीं हुई थी….अगले दिन हम ऑफिस गए थे पर थोड़ा लेट….कुछ देर ऑफिस में रहे पर लगा वो दीवारें….वो लोग जैसे झंझोड़ रहे हों…कोई 2-3 बजे तक ऑफिस में थे फिर दोस्तों को बोल कर ऑफिस से निकल गए….घर जाना चाहते थे और सारे गिले शिकवे दूर कर लेना चाहता थे, पर जाने क्यों हिम्मत ही नहीं हुई…सोचा थोड़ी शराब पी कर…..तो बात करना आसान होगा” फिर रुकते हुए बोला “…पर उस बात से उभर ही न पाए…न जाने कब देर रात हो गई और फिर जब लगा अब बस…बहुत हो गई, हम उठ कर घर को चल दिए….घर पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाया पर कोई जवाब नहीं मिला….नशे में न जाने क्या क्या बोल गए…अड़ोसी – पड़ोसी भी निकल आए थे…फिर ताला तोड़ा गया और जैसे ही हम अन्दर पहुँचे…डाली खून से लतपथ किचन के पास पड़ी थी….उसके बाद हमें कुछ याद ही नहीं….शायद पड़ोस में किसी ने आप को फ़ोन किया होगा….” मंदार की ऑंखें नम हो गई थी|
“सर एक सिगरेट पी लें….इफ यू डोंट माइंड…”
महिपाल बाहर चलने का इशारा करता है और तीनों साथ साथ बाहर चाय की दुकान पर आ जाते हैं…मंदार जेब से सिगरेट का पैकेट निकालता है…अपने होठों पर एक सिगरेट रखता है और लाइटर से जलाता है…एक लम्बा कश लेने के बाद सिगरेट का पैकेट महिपाल को ऑफर करता है|
महिपाल सिगरेट पीने से मना कर देता है पर पैकेट हाथ में पकड़े घुमाता रहता है, कुछ देर बाद वापस मंदर से बोलता है, “कल जब ऑफिस गए थे तो ….क्या नाम था उसका…..”
“दिवाकर!” मनोज पीछे से बोलता है|
“हाँ दिवाकर…..उसका हाव भाव कैसा था…..कोई बात हुई थी ऑफिस में….पर्सनल….आफिशियल….?” महिपाल अपनी बात आगे बढ़ाता है|
मंदार नें एक कश सिगरेट का खींचा फिर बोला, “बड़े- बाबू कल ऑफिस नहीं आए थे..”
महिपाल को कुछ खटकाता है…फिर घड़ी देखते हुए बोलता है, “ऑफिस कितने बजे खुलता है?”
“साढ़े नौ बजे…लेकिन स्टाफ आते-आते दस बज जाता है…” मंदार बोला|
महिपाल मनोज को इशारा करता है और मनोज मंदार को अन्दर छोड़ कर वापस चाय की दुकान पर आ जाता है|
महिपाल अपना माथा पकड़े मनोज से बोलता है, “मनोज चाय बोल…साला सर दर्द हो रहा है…|”
“छोटे, दो चाय दे बिना शक्कर….” मनोज चाय का आर्डर दे देता है|
“सर क्या लगता है…कहीं दिवाकर तो नहीं…” मनोज धीरे से पूछता है|
“साहब चाय…” चाय वाले की आवाज़ आती है|
“ये सिगरेट कितने की है…?” महिपाल चाय वाले से पूछता है|
“नौ रुपये की साहब….दूँ!” चाय वाला महिपाल से बोलता है|
“और पैकेट?” महिपाल फिर से चाय वाले से पूछता है|
“साहब पिच्चासी का…. दूँ!”
महिपाल मना करता है और चाय पीने लगता है|
मनोज चाय पीते हुए पूछता है, “आप…. सिगरेट…. कब से सर?”
महिपाल कुछ सोचता रहता है फिर बोलता है, “साला पच्चीस रुपये का पैकेट था…अब पिच्चासी का हो गया…शादी के बाद सिगरेट शराब सब छोड़ दी….” फिर आधी चाय छोड़ कर बोलता है, “चल बाइक निकाल…मैं आता हूँ|” इतना बोल कर महिपाल सरकारी अस्पताल के अन्दर जाता है और मंदार से कुछ बात करता है| फिर बाहर निकल कर आता है, बाइक पर पीछे बैठता है और बोलता है, “आतिश मार्केट पता है?…उधर चलना है…”
मनोज बिना कुछ पूछे बाइक स्टार्ट करता है और दोनों चल देते हैं|
आतिश मार्केट की एक रिहायशी कॉलोनी जिसमें डूप्लेक्स मकान बने होते हैं|
महिपाल एक घर का मेन गेट खोल कर बगीचा पार करता हुआ अन्दर जाता है और कई बार घंटी बजाता है पर कोई जवाब नहीं मिलता है….ध्यान से देखता है तो इन्टरलॉक लगा होता है|
“भाग तो नहीं गया सर….” मनोज बोलता है|
महिपाल इधर –उधर नज़र घुमाता है फिर बाहर निकलता है और पड़ोस वाले घर का गेट खटखटाता है|
एक अधेड़ उम्र की औरत निकल कर बाहर आती है|
“नमस्ते!…ये आपके पड़ोस में जो दिवाकर जी रहते हैं कैसे आदमी है?” महिपाल सीधे पूछता है|
“क्या हो गया?…क्यूँ पूछ रहे हो?…”बूढ़ी औरत बोली|
“नहीं बस जानकारी लेनी थी…वो पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया था तो रूटीन पूछ-ताछ थी|” महिपाल इधर –उधर देखते हुए पूछता है|
“अच्छा है….ज्यादा किसी से बोलता नहीं है…कभी कभी मेरे लिए भी सब्जी ले आता है….मैं भी अकेले रहती हूँ…बेटा बैंगलोर में है और बेटी ऑस्ट्रेलिया में…” बूढ़ी औरत बोली|
महिपाल मुस्कराता है और बोलता है. “अच्छा….और इनका परिवार?”
बूढ़ी औरत बोलती है, “फैमिली शायद कोटा में है..अभी तो दो –तीन दिन से दिखा भी नहीं…शायद घर गया होगा|”
“जी बहुत अच्छा…वो आए तो बोलिए श्याम नगर थाने में एक बार मिल ले….” महिपाल बोलता है फिर मनोज को दिवाकर के घर का दरवाज़ा बंद करने का इशारा करता है|
बूढ़ी औरत हाँ में सर हिलती है और गेट बंद कर लेती है|
“और हाँ माता जी….हर किसी को मत बोला करो अकेली रहती हो..जमाना ठीक नहीं है…” मनोज चलने से पहले उस औरत को सलाह देता है|
महिपाल घड़ी देखता है फिर मनोज से बोलता है, “इसका ऑफिस खुलने में अभी एक घंटा है…. एक घंटे में राजा पार्क चौराहे पर मिलते हैं..”
“चलिए में आपको छोड़ देता हूँ..” मनोज बोलता है
“नहीं- नहीं मैं चला जाऊंगा…बाहर मार्केट से ऑटो पकड़ लूँगा….तुम पहुँचो…देर मत करना” महिपाल बोलता है|
“ओके सर!” मनोज बाइक स्टार्ट करता है और चला जाता है|
महिपाल भी टहलता हुआ गली पार कर जाता है|
भाग 9: सुराग (Ch 9: Suraag)
नहाया धोया मनोज तय समय पर राजा पार्क चौराहे पर एक चाय की दुकान पर चाय पी रहा होता है| थोड़ी देर में ऑटो वाले को पैसा देता महिपाल नज़र आता है| तेज़ी से चलता महिपाल मनोज के पास आता है और बोलता है, “सॉरी यार लेट हो गया…चल अन्दर चलते हैं”
इन्श्योरेन्स ऑफिस का रिसेप्शन, रिसेप्शन पर अधेड़ उम्र का सिक्यूरिटी गार्ड बैठा रजिस्टर में कुछ लिख रहा होता है| ऑफिस स्टाफ आते जाते है, फिंगर सेंसर पर पंच करते है फिर रजिस्टर में कुछ लिखते रहते है| उधर किनारे लॉबी में कुछ लड़के – लड़कियां सिगरेट पी रहे होते हैं|
“जी सर बताइए क्या काम है?” सिक्यूरिटी गार्ड पूछता है|
“ये है सब इंस्पेक्टर महिपाल चौधरी और मैं मनोज…मनोज यादव… कांस्टेबल श्याम नगर थाने से..आप के ऑफिस में दिवाकर जी काम करते हैं, उन्ही से काम है|” मनोज बोलता है
महिपाल इधर उधर देखता रहता है|
“बड़े-बाबू तो अभी आए नहीं है..पांच –दस मिनट इंतज़ार कर लीजिए आते ही होंगे..” सिक्यूरिटी गार्ड बताता है|
दोनों पास ही रखे सोफे पर बैठ जाते है| महिपाल एक मैगज़ीन उठा कर देखने लगता है और मनोज आते जाते स्टाफ, खास कर लेडीज स्टाफ को देखता रहता है|
थोड़ी देर में महिपाल सिक्यूरिटी गार्ड से पूछता है, “कल कितने बजे गए थे दिवाकर जी ऑफिस से?”
सिक्यूरिटी गार्ड बोलता है, “बड़े-बाबू तो कल नहीं आए थे…वैसे डेली साढ़े छह बजे दफ्तर से निकल जाते है| समय पर आते है… और समय पर जाते है…..सर चाय कॉफ़ी बोले आपके लिए|”
“हाँ चाय चलेगी…बिना शक्कर” मनोज फ़ौरन बोलता है, फिर महिपाल को देखता है….महिपाल का भाव शायद ना बोलने का था पर अब तो मनोज बोल चुका था|
इंतज़ार करते आधा घंटा और बीत जाता है|
मनोज थोड़ा गुस्से में बोलता है, “आप फ़ोन कीजिए दिवाकर जी को ….पूछिए ऑफिस आ रहे हैं या नहीं…पूरा दिन यहीं थोड़े बैठना है|”
सिक्यूरिटी गार्ड रजिस्टर के पीछे से नम्बर देख कर लैंडलाइन से फ़ोन करता है|
“बड़े-बाबू फ़ोन नहीं उठा रहे…” सिक्यूरिटी गार्ड धीरे से बोलता है
“घंटी जा रही है ?” महिपाल पूछता है
“हाँ सर दो बार पूरी-पूरी घंटी गई पर नहीं उठा रहे है….शायद गाड़ी चला रहे होंगे|” सिक्यूरिटी गार्ड असमर्थता दिखाते हुए बोलता है
महिपाल मनोज को उठने का इशारा करता है…. सिक्यूरिटी गार्ड के पास आता है फिर अपनी पॉकेट डायरी में कुछ लिखता है| इसके बाद दोनों वहां से निकल जाते हैं…
दिवाकर के घर का बाहरी हिस्सा, महिपाल चारो तरफ देखते हुए गेट खोलता है| पड़ोस की बूढ़ी औरत छत पर कपड़े सुखा रही होती है| फिर छत से ही महिपाल और मनोज को अन्दर आते देखती है|
“दिवाकर बाबू आए क्या?” महिपाल जोर से पूछता है|
बूढ़ी औरत हाथ के इशारे से मना करती है
दिवाकर और मनोज अन्दर के दरवाज़े के पास आते है, दिवाकर बोलता है, “वीडियो बना..दरवाज़ा तोड़ना पड़ेगा…ऐसा न हो दूर भाग जाए…अन्दर देखते हैं, शायद कुछ सुराग मिल जाए”
मनोज मोबाइल निकालता है और वीडियो बनाना शुरू करता है|
महिपाल इधर –उधर देखता है, उसे बगल के घर के पोर्च में एक लोहे की राड पड़ी दिखती है|
“माता जी ये रॉड लेनी है…अभी वापस करता हूँ” बिना बूढ़ी औरत के ज़वाब का इंतज़ार किए महिपाल बगल के घर में जाता है, रॉड उठाता है और वापस दिवाकर के घर आ जाता है|
“मनोज वीडियो स्टार्ट कर….”
“सर स्टार्ट है|” मनोज जवाब देता है
महिपाल इन्टरलॉक में रॉड फसा कर लॉक उठा देता है और दरवाज़ा खोल देता है| महिपाल रॉड पकड़े सधे क़दमों से अन्दर जाता है, मनोज पीछे- पीछे वीडियो शूट करता चलता है|
“सर! दिवाकर!…” मनोज बेडरूम की ओर देखता हुआ बोलता है|
महिपाल अन्दर देखता है तो दिवाकर बेड पर बेसुध पड़ा होता है| कमरे के अन्दर जा कर महिपाल चेक करता है तो पता चलता है वह मर चुका होता है|
महिपाल मनोज को वीडियो बंद करने को बोलता है, फिर सरसरी निगाह से पूरे कमरे का मुआयना करता है|
कुछ कागजों को पलटता हुआ महिपाल बोलता है, “थाने फ़ोन कर दो…टीम बुला लो…सुसाइड लगता है…फारेंसिक वालों को भी बोल दो|”
फिर थोड़ा रुक कर बोलता है, “एक काम करो…मैं थाने में फ़ोन कर देता हूँ..तुम आस- पास पता करो किसी के पास इसके घरवालों का नंबर है क्या? नहीं तो ऑफिस से ले कर इसके घर खबर भिजवा दो….और हाँ मंदार को बोलो थाने में पहुँचे….तुम पंचनामा करा कर सीधे थाने मिलो”
मनोज उसके ही साथ साथ घर से बहार निकलता है….अड़ोस पड़ोस में हलचल और ताका-झाँकी शुरू हो गई होती है|
मनोज धीरे से बोलता है, “साला प्यार करते ही क्यों हो जब निभा नहीं सकते…खुद तो मरा- मरा एक और को ले गया|”
भाग 10: जनरल इंक्वारी(Ch 10: General Inquiry)
करीब दो-तीन घंटे बाद महिपाल और मनोज थाने के बाहर चाय की दुकान पर खड़े चाय पी रहे होते हैं, तभी मंदार आता दिखता है|
“मंदार! इधर!” मनोज जोर से आवाज़ देता है|
मंदार सधे क़दमों से चाय की दुकान तक आता है|
“चाय पिओगे, मंदार?” मनोज पूछता है
मंदार मना कर देता है और जेब से सिगरेट निकाल कर जलाता है|
“तुम्हारे बड़े- बाबू ने खुदखुशी कर ली है..” मनोज मंदार से बोलता है|
मंदार चौंक कर मनोज को देखता है, “तो… इसका मतलब….”
“इसका मतलब उन दोनों की मौत के जिम्मेदार तुम हो!” महिपाल सधे शब्दों में मंदार से बोलता है| फिर मंदार की जलती सिगरेट हाथ में लेता है थोड़ी देर देखता है फिर उसमें से एक लम्बा कश लेता है|
“क्या बोल रहे है सर…मैं कैसे…मैं तो ….आप तो सब जानते है…” मंदार अपनी बात रखता है|
महिपाल उसकी सिगरेट उसे वापस पकड़ाता है फिर चाय पीते हुए बोलता है, “….न तुम दिवाकर के घर जाते…न प्यार का जिक्र होता…..न उसकी खोई महबूबा…जो तुम्हारी पत्नी थी…मिलती ..न उसे ये सब करना पड़ता|”
मनोज बोलता है “अपने प्यार को दुबारा देख कर पागल हो गया होगा…और जब लगा नहीं मिल पाएगी तो उसको मार कर खुद भी मर गया….और तुम्हे रंडवा कर गया|”
महिपाल मनोज को घूरता है, मानों गलत शब्दों के प्रयोग के लिए रोकना चाहता हो|
“सॉरी सर” मनोज अपने शब्दों के लिए अफ़सोस करता है|
महिपाल चाय का ग्लास रखता है और सौ का नोट चाय वाले की तरफ बढ़ाता है| बिना फुटकर का इंतज़ार किए थाने की ओर बढ़ जाता है और बोलता है, “मनोज जल्दी अन्दर आ जा और फुटकर वापस ले लेना…फटा फट पेपर तैयार करना है..”
“यस सर!” मनोज जल्द चाय पीते हुए बोलता है…
थाने के अन्दर महिपाल अपने डेस्क पर बैठा होता है, मंदार उसके सामने बैठा महिपाल को देख रहा होता है, तभी मनोज एक रजिस्टर ले कर आता है|
“यहाँ साइन कर दो” मनोज मंदार से बोलता है|
मंदार महिपाल को देखता है, मानों जानना चाह रहा हो की ये क्या है….
“साइन कर दो, NOC है….इस पेपर के बिना बॉडी नहीं मिलेगी” महिपाल समझाता है|
मंदार चुपचाप साइन करता है, एक पेपर लेता है और चला जाता है|
तीन दिन बीत जाते है| दोनों ही घर में क्रियाकर्म हो चुका होता है| और थाने में एक सामान्य दिन होता है| मनोज महिपाल के सामने बैठा सही तरीके से कपालभाती करने का तरीका बयां कर रहा होता है, महिपाल वहां होते हुए भी कुछ अलग सोच रहा होता है फिर अचानक बोलता है, “यार मनोज कुछ तो अटपटा है….जब पिछले दस साल में कुछ नहीं किया तो अचानक खून और फिर खुदखुशी…कुछ तो गड़बड़ है|”
मनोज तीन दिन बाद अचानक आए इस सवाल से थोड़ा चौंकता है फिर बोलता है, “सर क्या सोच रहे हैं…सिंपल रिवेंज केस था….इतने साल बाद अपनी महबूबा को देख अरमान जागे होंगे और जब मिलने गया होगा और वो नहीं मानी होगी तो मार दिया….फिर अपराध बोध में खुद को मार लिया| मोबाइल मैसेज और नेटवर्क लोकेशन भी तो यही बताती है कि उस रोज़ दिवाकर मंदार के घर गया था|”
“चल बाइक निकल…रजिस्टर में एंट्री कर ….दिवाकर के घर हो कर आते है….मैं सर को बोल कर आता हूँ” महिपाल उठते हुए बोलता है|
“यस सर!” मनोज भी उठ जाता है| फिर चलते हुए भुनभुनाता है… “क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो…”
थोड़ी देर बाद दिवाकर के घर पर….
दिवाकर के माता पिता सोफे पर बैठे होते है, बहन पानी ले कर आती है| सामने सोफे पर महिपाल और मनोज बैठे होते है| महिपाल पानी पीता है और पूछता है, “कभी किसी से दुश्मनी…कोई रंजिश?”
दिवाकर के माता पिता थोड़ा चौकते है फिर दिवाकर के पिता बोलते है, “नहीं बहुत सीधा था हमारा बेटा..बचपन से कभी कोई शिकायत नहीं थी…सिर्फ काम से काम…”
तभी दिवाकर की माँ बोलती है, “रोज़ बात करता था घर पर…दिन भर की पूरी बात बताता था….आज तक उसने कोई बात नहीं छिपाई..”
महिपाल गौर से उनकी हर बात सुनता है फिर बोलता है, “और दोस्त…दोस्त कौन कौन थे…वो लड़का जिसकी बीवी का कत्ल हुआ बता रहा था दिवाकर के दो-तीन ख़ास दोस्त थे…पुराने|
“हाँ युसूफ, दिलीप और बंटी,….युसूफ तो बचपन का दोस्त था…घर भी आता जाता था,…दिलीप और बंटी जयपुर में ही मिले थे…ग्रेजुएशन में…एक दो बार कोटा भी आए थे…अच्छे लड़के थे..पर उस लड़की के चक्कर में सब दोस्तों से अलग हो गया था मेरा बेटा|” यह बोलते दिवाकर की माँ के आसूं निकल आते हैं|
“वैसे ये सब आप अब क्यूँ पूछ रहे है ….कोई ख़ास बात?” दिवाकर के पिता महिपाल से पूछते है|
“नहीं, वैसे ही, जनरल इंक्वारी….वो केस क्लोज़र रिपोर्ट बनानी है उसकी फॉर्मेलिटी है” महिपाल बात टालता है|
दिवाकर की माँ, दिवाकर के पिता के कान में कुछ कहती है…फिर दिवाकर के पिता बात को टालने का भाव लाते है, तभी महिपाल बात बताने के लिए जोर डालता है|
“इंस्पेक्टर साहब एक बात थी सोचा बता दूँ…वो लड़का दिलीप….एक बार उस लड़की को लेकर दिलीप और दिवाकर में झगड़ा हो गया था” दिवाकर की माँ कहती है|
“अरे वो तो बहुत पहले की बात थी….ज़रा सी गलत फहमी थी…बाद में सब ठीक हो गया था…” दिवाकर के पिता बात ख़त्म करने की लिहाज़ से बोलते हैं|
महिपाल और मनोज अब कुछ ज्यादा सतर्क हो जाते है, महिपाल बोलता है, “थोड़ा डिटेल में बताएँगे…”
भाग 11: वज़ह (Ch 11: Wazah)
दिवाकर के पिता बोलते है, “अरे वो कुछ नहीं….एक बार वो लड़की…क्या नाम था…हाँ डॉली….हाँ उसको ले कर दिवाकर और दिलीप में झगड़ा हो गया था…दिलीप भी डॉली को पसंद करता था लेकिन उसने बोला किसी को नहीं था….वो तो एक बार पता नहीं कैसे दिवाकर को पता चल गया और बात बढ़ गई थी….हालांकि बाद में सब ठीक हो गया था…छोटी सी बात थी|”
महिपाल और मनोज ऐसे सुन रहे थे मानों उन्हें कुछ खटक रहा हो|
तभी दिवाकर की माँ बोली, “और एक बात…लेकिन दिलीप और दिवाकर में अभी हाल ही में बात भी हुई थी….इतने सालों बाद…दिवाकर बता रहा था|”
महिपाल हामी में सर हिलाता है…वो यह बात जानता था|
“वो आने वाला था…दिवाकर से मिलने…” दिवाकर की माँ खोए –खोए बोलती है|
“कब?….कब की बात है?” महिपाल चौकते हुए पूछता है|
दिवाकर की माँ बोलती है “उसी दिन..जिस दिन ये सब हुआ….दिवाकर का फ़ोन आया था….बोल रहा था इतने साल बाद दिलीप आ रहा है…खुश था बहुत|”
महिपाल को कुछ खटकता है, कुछ सोचते हुए बोलता है, “नंबर है किसी का दिलीप, यूसुफ…बंटी|”
दिवाकर के पिता एक पॉकेट डायरी निकाल कर देखते है फिर बोलते हैं, “दिलीप….9823…”
मनोज अपने मोबाइल पर डायल करता है|
दिवाकर के पिता आगे बोलते हैं, “यूसुफ का नंबर…9836…”
“दिलीप का नंबर स्विच ऑफ आ रहा है” मनोज बोलता है| “एक बार यूसुफ का नंबर फिर से दीजिए..”
दिवाकर के पिता फिर से डायरी खोलते हैं, और बताते है, “9836…”
तभी महिपाल मनोज को अपने नजदीक बुलाता है और कान में कुछ कहता है| मनोज नंबर लगा कर बाहर चला जाता है और बात करने लगता है|
महिपाल दिवाकर की बहन की तरफ देखता है और पूछता है, “ये कौन?”
“हमारी बेटी है, मंज़री” दिवाकर के पिता बोलते है|
“क्या करती हो?” महिपाल मंजरी से पूछता है
“जी मैं C.A कर रही हूँ…फाइनल इयर”
“गुड!…दिवाकर की कोई बात जो तुम्हे पता हो और बताना चाहो….कुछ भी…” महिपाल आगे बोलता है
“नहीं, मेरे भईया बहुत अच्छे थे….कोई बुरी आदत नहीं थी….डॉली के चक्कर में इतना बड़ा कदम….” मंजरी बोली|
“अस्थमा था तुम्हारे भाई को….सिगरेट की आदत तो थी|” महिपाल मंजरी की तरफ आते हुए बोलता है| फिर बेहद नज़दीक आ कर मंजरी के कान में धीरे से बोलता है, “और ये आदत तुम्हे भी है…”

मंज़री घबरा जाती है, लिकिन इस बात का जवाब नहीं देती है, फिर बात घुमाते हुए बोलती है, “हाँ भईया पहले पीते थे..सबको पता था…पर अस्थमा का अटैक आने के बाद छोड़ दी थी”
महिपाल हामी में सर हिलाता है फिर बोलता है, “मैंने भी छोड़ दी है…काफी साल हो गए…पर टेंशन ज्यादा होती है तो छुप छुपा कर पी लेता हूँ ..एक या दो…,पत्नी को पता नहीं चलता” महिपाल मुस्करा कर कहता है और दिवाकर के माँ बाप को देखता है|
तभी मनोज बाहर से अन्दर आता है और महिपाल के कान में कुछ कहता है…सुनते सुनते ही महिपाल के चेहरे के भाव बदल जाते हैं|
महिपाल थोड़ा सख्त लहजे में बोलता है, “क्या- क्या छुपाया है?…और क्यों?…पुलिस से किसको बचा रहे हो…अपने बेटे के कातिल को…”
“क्या बात कर रहे हैं इंस्पेक्टर साहब?” दिवाकर के पिता चौंक कर पूछते है|
मंज़री और दिवाकर की माँ का चेहरा घबराया हुआ रहता है|
“दिवाकर और प्रदीप के झगड़े की वज़ह डॉली नहीं…. आपकी बेटी थी…मंजरी” महिपाल पूरे रौब से बोलता है|
दिवाकर के माँ बाप और मंज़री तीनो चौंक जाते है| थोड़ी देर सन्नाटा रहता है फिर दिवाकर के पिता बोलते है, “अरे नहीं इंस्पेक्टर साहब ….वो तो छोटी सी बात थी…बच्चों की नादानी…वैसे भी उस बात को बहुत अरसा हो गया इंस्पेक्टर साहब| अब तो….”
“मैंने पहले ही बोला था, कानून से कुछ भी नहीं छुपाना..बताइए पूरी बात बताइए…और याद रखिए हम पुलिस वाले है…खबर सूंघना और सूंघ कर निकालना हमारे खून में होता है….तो फिर…” महिपाल सख्त लहजे में ताना मारते हुए बोलता है|
“असल में एक बार गर्मियों में दिलीप, दिवाकर के साथ आया था और हमारे घर ही रुका था…मंज़री तब दसवीं में थी..पता नहीं कैसे दोनों करीब हो गए..दिवाकर को जब पता चला तो बात बढ़ गई थी….लेकिन उसके बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ….भगवान् कसम…आप पूछ लीजिए..” दिवाकर के पिता रुहसे हो कर बोलते है|
महिपाल मंज़री को देखता है, पर मंज़री कुछ भी नहीं बोलती|
“साहब हम लोग मिडिल क्लास शरीफ लोग है…छोटी सी बात थी…बात फ़ैल जाती और समाज में उठना बैठना दूभर हो जाता….देखिए लड़की सयानी हो गई है…शादी की बात चल रही है|” दिवाकर के पिता हाथ जोड़ कर, आँख में आसूं रखते हुए कहते है|
“छोटी सी बात….अरे ऐसा भी हो सकता है, दिलीप यहाँ आया हो और उसने ही दिवाकर को….”
दिवाकर के घरवाले अचंभित हो उठते हैं|
“कुछ भी हो सकता है…पुलिस की थ्योरी है….कानून का काम है मुजरिम को पकड़ना और पीड़ितों को न्याय दिलाना…आप की छोटी सी बात से हो सकता है अपराधी बाहर घूम रहा हो” महिपाल तल्ख़ अंदाज़ में कहता है|
फिर मनोज की ओर देखते हुए पूछता है, “बात हुई…. दिलीप से?”
“नहीं सर, फ़ोन अभी भी बंद आ रहा है….” मनोज बोलता है|
“आप लोगों को दिलीप का एड्रेस पता है …या कोई और नंबर?” महिपाल दिवाकर के पिता की ओर देख कर पूछता है|
“सर युसूफ से पूछता हूँ….शायद उसे पता हो…” मनोज बोलता है
“जोधपुर का है…पर एड्रेस नहीं पता…” दिवाकर के पिता बोलते है
मनोज यूसुफ़ को फिर से फ़ोन करता है और बात करते हुए पॉकेट डायरी में कुछ लिखता है
थोड़ी देर बाद मनोज उत्साहित हो कर बताता है, “सर एड्रेस मिल गया है…”
“ठीक है…नजदीकी थाने से संपर्क करो और बोलो दरियाफ्त कर के खबर करें….बोलना अर्जेंट है|” महिपाल मनोज को बोलता है
मनोज बात करने बाहर निकल जाता है
“आप लोग हो सके तो जयपुर ही रुकिए..ज़रुरत पड़ी तो एक दो बार मिलना पड़ सकता है| महिपाल बोलता है और उठ कर जाने लगता है|
“तो क्या दिवाकर को किसी ने…?” दिवाकर की माँ पूछती है
“हो सकता है….अभी कुछ भी नहीं कह सकते..” महिपाल बोल कर बाहर चल देता है
भाग 12: मेवाती लॉज (Ch12: Mewaati Lodge)
थोड़ी देर बाद महिपाल और मनोज एक साधारण से रेस्टोरेंट में बैठे खाना खा रहे होते है| तभी महिपाल का फ़ोन बजता है|
“जी सर!…ओके सर!…मानसरोवर मेट्रो स्टेशन….मेवाती लॉज…ओके सर…बस अभी निकल रहे है सर….जी सर….जय हिन्द!” महिपाल अपने अधिकारी से फ़ोन पर बात करते हुए कहता है|
मनोज खाना खाते हुए पूछता है, “क्या हुआ सर….कोई नया कलेश….”
महिपाल बोलता है, “अरे अपनी जिंदगी में सुकून कहाँ…चल फटा फट ख़तम कर…सुसाइड केस है..तफ्तीश करनी है….” थोड़ा रुक कर बोलता है, “एक काम कर टीम वही बुला ले…फोरंसिक को भी बोल दे..एड्रेस व्हाट्सएप कर रहा हूँ.” महिपाल मेसेज टाइप करते हुए बोलता है|
अरे सर दो मिनट रुक जाओ सुकून से खाना तो खा लो…लाश को कहाँ जाना है….सब फ़ोन कर देता हूँ…आप खाना खाओ” मनोज बोलता है|
तभी मनोज का फ़ोन बजता है…खाना खाते खाते फ़ोन पर बात करता है फिर फ़ोन काट देता है|
“एड्रेस सही है….चार दिन पहले जयपुर आया था तब से घर नहीं आया…एफ.आई.आर. भी कराई है उसकी बीवी ने…वो जोधपुर थाने से फ़ोन था” मनोज महिपाल को बताता है|
महिपाल हाथ धोते- धोते कुछ सोचता रहता है और फिर मनोज को उठने का इशारा करता है|
थोड़ी देर बाद मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास वाली गली में दोनों रुकते है, पुराना बाजार है यो चहल पहल काफी थी| महिपाल पीछे से उतरता है और पूरे एरिया पर एक सरसरी निगाह दौड़ता है…एक पान वाले से एड्रेस पूछता है, फिर बताए हुए एड्रेस पर चल पड़ता है|
एक छोटी सी बेहद ही साधारण लॉज के रिसेप्शन पर मनोज और महिपाल पहुचते है|

“फ़ोन आया था…कौन सा कमरा?” महिपाल रिसेप्शन पर खड़े एक आदमी से पूछता है
“हां सर मैंने ही फ़ोन किया था…आइए ….इधर फर्स्ट फ्लोर…आइये सर” वह आदमी उन्हें कमरे की तरफ ले जाता है|
गैलरी में एक कमरे के सामने 8-10 लोग जमा होते है और दरवाज़ा आधा खुला होता है..सभी नाक पर हाथ रखे खड़े होते है| महिपाल पहले उनको अलग करवाता है फिर धीरे से दरवाज़ा धकेलता है..अन्दर एक हलकी गंध महसूस होती है तो नाक पर रुमाल रखते हुए महिपाल और मनोज कमरे में दाखिल होते है|
“अन्दर कौन- कौन घुसा था?” महिपाल सख्त आवाज़ में पूछता है
“सर ये कमरा कोई तीन दिन से नहीं खुला था…न खाने का आर्डर न पानी का..आज सफाई के लिए खटखटाया तो भी कोई आवाज़ नहीं आई…अन्दर से बदबू भी आ रही थी तो लड़के ने मास्टर की से खोल लिया….तो ये…” रिसेप्शन वाला आदमी बोला|
“दरवाज़ा किसने खोला था?” महिपाल पूछता है
“”सर मुकेश ने…यहीं काम करता है….वो रहा”
मनोज मुकेश की तरफ देखता है, एक 17-18 साल का लड़का घबराया हुआ खड़ा था|
“सर मै तो….मेरे को बोला तो मैंने खोला था…” मुकेश बोलता है
“और कौन कौन अन्दर गया था?” महिपाल पूछता है
“सब गए थे सर…हम सब अन्दर गए थे..” मुकेश फ़ौरन बोलता है
महिपाल सावधानी से कमरे का मुआयना करता है, फिर मनोज से पूछता है, “फॉरेंसिक वालों को बोल दिया था?”
मनोज हां में सर हिलाता है
“टीम आ जाए तो पोस्टमार्टम के लिए भेज देना|” महिपाल बोलता हुआ कमरे से बाहर निकलता है
बाहर रिसेप्शन वाले आदमी से पूछता है, “नाम?”
“सर…मदन…मदन मीणा” रिसेप्शन वाला लड़का बोलाता है
“रजिस्टर दिखाओ….” बोलते हुए महिपाल उसके साथ रिसेप्शन पर आता है
रिसेप्शन पर वह रजिस्टर महिपाल के सामने रख देता है| महिपाल रिसेप्शन रूम को ध्यान से देखता है फिर पूछता है, “कैमरा नहीं है…. CCTV?”
“वो सर…लॉज है…” रिसेप्शन वाला लड़का शर्मिंदगी में बोलता है
“इसमें तो नाम दिलीप लिखा है….तू तो मदन बता रहा था..” महिपाल नाराज़ होते हुए बोलता है
“नहीं सर.. मदन मेरा नाम है….इसका नाम तो …..मुझे लगा आप मेरा….”
महिपाल अजीब सी नज़रों से उसे देखता है फिर लॉज के बाहर निकल जाता है|
महिपाल बाहर चाय की दुकान पर खड़ा मनोज को फ़ोन करता है और नीचे बुलाता है, फिर मार्केट के चारो ओर नज़र घुमाता है| थोड़ी देर में मनोज बाहर निकल कर आता है|
मनोज महिपाल के पास आता है और बोलता है, “सर क्या लगता है सुसाइड या मर्डर?”
महिपाल कोई ज़वाब नहीं देता बस सोचता रहता है फिर बोलता है, “कोई मोबाइल मिला?”
“नहीं सर मोबाइल तो नहीं मिला….पर एड्रेस वही है ..जोधपुर का|” मनोज बोलता है
“टीम कब तक आ रही है?” महिपाल चाय ख़त्म करते हुए बोलता है
“सर ऑन द वे है.. आधे घंटे में पहुँच जाएंगे” मनोज बोलता है
तभी महिपाल के सीनियर का फ़ोन आता है और वह सिचुएशन का अपडेट देता है…साथ ही मनोज को बिल चुकाने का इशारा भी करता है|
अगले दिन थाने में सुबह- सुबह का वक़्त…
महिपाल अपनी कुर्सी पर बैठा मोबाइल पर गेम खेल रहा होता है, तभी मनोज बाहर से अन्दर आता है और बोलता है, “रिपोर्ट आ गई है…..सुसाइड लगता है….नींद की गोली का हैवी डोज़” फिर कुछ रुक कर पूछता है, “आप का क्या सोचना है…”
“देख मेरी थ्योरी से एक साथ दो पुराने यार सुसाइड करें पॉसिबल नहीं है…शायद दिवाकर ने पहले उस लड़की को मारा होगा फिर दिलीप को….रीज़न भी है..पर पैटर्न बिलकुल अलग है” महिपाल मोबाइल पर गेम खेलते खेलते बोलता है|
“ऐसा भी हो सकता है दिलीप और दिवाकर मिले हों फिर उसकी बहन वाली बात पर…” मनोज अपनी बात रखता है|
“कॉल डिटेल्स और नेटवर्क लोकेशन रिपोर्ट आ गई?” महिपाल पूछता है
“हाँ सर वो कंप्यूटर रूम में है….चलिए..” मनोज बताता है
दोनों उठ कर कंप्यूटर रूम में चले जाते है|
थोड़ी देर बाद महिपाल और मनोज थाने के बाहर चाय की दुकान पर खड़े चाय पी रहे होते है|
“सर अब तो सब साफ़ है…दिलीप जोधपुर से दिवाकर के घर आता है…वहां उसको मारता है फिर शराब खरीद कर लॉज आता है…अपराध बोध और ज्यादा नशे में खुदखुशी कर लेता है” मनोज पूरे कॉन्फिडेंस से बोलता है|
“और वो लड़की?” महिपाल धीरे से बोलता है
‘वो तो पहले से क्लियर है….दिवाकर डॉली के घर जाता है उससे झगड़ा होता है दिवाकर उसे मार कर घर लौटता है…दिलीप उसके घर आता है..शराब के नशे में दिवाकर उसे बता देता है..दोनों में बहस होती है और दिलीप उसे नशे की गोली देकर मार देता है…फिर अपराध बोध में खुद भी….वैसे भी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था..नशे की गोली कौन सी बड़ी बात थी|
महिपाल चाय के पैसे देता है और मनोज को बाइक निकालने को बोलता है|
भाग 13: बरसात की वो शाम (Ch13: Barsaat ki wo Shaam)
महिपाल और मनोज की बाइक सरकारी अस्पताल के अन्दर जाती है और दोनों सरकारी अस्पताल के मुर्दा घर के पास पहुचते है, बाइक लगाने के बाद मनोज कोई फ़ोन करता है फिर हाथ हिला कर इशारा करता है दूर दिलीप की पत्नी बॉडी के लिए वहां इन्तेजार कर रही होती है|
महिपाल मनोज को इशारा करता है, मनोज जाता है और दिलीप की पत्नी को भीड़ से दूर महिपाल के पास ले आता है| महिपाल पहले सांत्वना देता है फिर बोलता है, “आप दिवाकर को जानती थी?”
जी सुना तो था पर कभी मिली नहीं थी…हफ्ते भर पहले देर रात फ़ोन आया तो पता चला| ….उन्ही से मिलने जयपुर आए थे…” इतना बोलते बोलते दिलीप की बीवी रोने लगती है|
“दिवाकर का भी….आई एम श्योर…आप को पता चला होगा” महिपाल बोलता है|
“जी… सुना मैंने…लेकिन अचानक कैसे….इनकी तो कई साल से कोई बात चीत भी नहीं थी..अचानक एक दिन फ़ोन आता है और सब बदल जाता है….” दिलीप की पत्नी रुहाँसे मन से बोलती है|
“कोई ख़ास बात …कोई वाकया…जो आप बताना चाहें….” महिपाल पूछता है
दिलीप की पत्नी सोचने की कोशिश करती है फिर बोलती है, “ऐसा तो कुछ खास नहीं….वो बहुत खुश थे…सालों बाद मिलने जा रहे थे….फ़ोन पर बताया भी था कि दिवाकर जी के घर पहुँचने वाला हूँ|”
“एक बार समय देख कर बता सकती हैं कितने बजे फ़ोन पर बात हुई थी?” महिपाल पूछता है
फिर दिलीप की पत्नी फ़ोन देखती है और बोलती है, “उस रोज़ दो-तीन बार बात हुई थी…ये वाली कॉल शाम 6:23 की थी….इसके बाद मैंने फ़ोन किया था करीब साढ़े सात बजे….हाँ 7:36 लेकिन बात साफ़ नहीं हो पाई…यहाँ ज़ोरों की बारिश हो रही थी…बोल रहे थे नेटवर्क प्रॉब्लम है|”

महिपाल मनोज को देखता है |
“ठीक है आप इंतज़ार कीजिए…और कुछ भी याद आए तो मुझे फ़ोन कीजिए…ये मेरा नंबर है…और एक बात आप बॉडी जोधपुर ले जाएँगी या जयपुर में ही?…” महिपाल पूछता है
“यहाँ तो मेरा कोई है भी नहीं….मेरा भाई आ रहा है, फिर हम जोधपुर ही जाएंगे” इतना बोल कर दिलीप की पत्नी रोने लगती है|
“देखिए आप परेशान मत होइए..आपको कोई भी हेल्प चाहिए फ़ोन कर दीजिएगा…हम लोग पूरी मदद करेंगे” महिपाल सांत्वना देता है|
महिपाल और मनोज हाथ जोड़ कर जाने लगते है तभी दिलीप की पत्नी पीछे से बोलती है, “इंस्पेक्टर साहब एक बात और..उस रात मैंने टाटा स्काई रिचार्ज कराने के लिए भी फ़ोन किया था….वो टीवी बंद हो गया था और बच्चे ज़िद कर रहे थे…पर उधर से फ़ोन किसी लड़की ने उठाया था…फिर तुरंत फ़ोन कट गया| मुझे लगा मौसम खराब है इस लिए क्रॉस कनेक्शन लग गया होगा…फिर दोबारा लगाया तो बात हुई पर क्लियर नहीं थी, तेज़ बारिश के कारण बात साफ़ समझ नहीं आ रही थी|”
महिपाल वापस बाइक से उतरता है और नज़दीक आता है फिर पूछता है, “रिचार्ज हुआ था?”
“हाँ रिचार्ज तो दस मिनट के बाद हो गया था” दिलीप की पत्नी बोली
“कौन सा कनेक्शन है?” महिपाल पूछता है
“टाटा स्काई!” दिलीप की पत्नी जवाब देती है
“कनेक्शन ID मिल सकती है क्या?” महिपाल पूछता है
“जी वो तो घर पर होगी…जब जाउंगी तो दे पाउंगी..” दिलीप की पत्नी बोलती है
महिपाल सर हिला कर वापस बाइक की तरफ बढ़ता है|
“इंस्पेक्टर साहब…रुकिए.. ID है….वो जब रिचार्ज के लिए बोला था तो उनको ID व्हाट्सएप किया था…ये देखिए” दिलीप की पत्नी मोबाइल दिखाते हुए बोलती है
महिपाल ID अपनी पॉकेट डायरी में नोट करता है फिर मोबाइल पर कुछ सर्च कर फ़ोन करता है…..फ़ोन कान पर लगे लगे ही बाइक पर बैठता है और मनोज को चलने का इशारा करता है| फिर चलती बाइक पर फ़ोन कान से दूर करता है और मनोज से कहता है, “मानसरोवर”
मनोज बिना कुछ पूछे बाइक मानसरोवर की ओर मोड़ देता है
महिपाल इशारा करता जाता है और मनोज बाइक चलाता जाता है, दोनों एक मोबाइल शॉप पर रुकते है महिपाल बाइक से उतरता है और चारो तरफ नज़र दौड़ता है, फिर दोनों मोबाइल शॉप के अन्दर चले जाते हैं और दुकान के मालिक के बारे में पूछते है|
“दुकान मालिक से बात करनी है” महिपाल आराम से बोलता है
“जी कहिए” दुकानदार बोलता है
“आप की दुकान में CCTV नहीं है?” महिपाल पूछता है
“सर मोबाइल की दूकान है …आप एक काम कीजिए वो तीसरी गली में गर्वित इलेक्ट्रॉनिक्स है उनके पास मिलेगा CCTV, कंप्यूटर….” दूकानदार समझाता है|
“जी नहीं मेरा मतलब CCTV लगा नहीं है..” महिपाल अपनी बात समझाता है
“कौन है आप?…क्या काम है?..इनकम टैक्स वाले हो क्या?” दूकानदार ताना मारते हुए बोलता है
“ए तमीज से…SI हैं….अभी हंसी अन्दर डाल देंगे” मनोज गुस्से में बोलता है
महिपाल मनोज को समझाता है फिर दुकानदार से बोलता है, “आप टाटास्काई रिचार्ज करते है?”
“जी”
ज़रा देख कर बताइए 24 नवम्बर की शाम एक रिचार्ज किया था इस ID पर….” महिपाल एक कागज़ दिखता है|
“सर एक मिनट…..,बदरी….वो रिचार्ज वाला रजिस्टर लाइयो….एक मिनट सर” दुकानदार बोलता है
दुकान पर काम करने वाला लड़का, बदरी रजिस्टर ला कर दुकानदार को दे देता है और वहीं पास खड़ा हो जाता है।
दुकानदार रजिस्टर चेक करता है और बोलता है, “जी एक रिचार्ज है पांच सौ का”
“एक लड़की ने कराया था” बदरी मुस्कराते हुए बोलता है।
“ओ हो…तुझे बड़ा याद है” मनोज बदरी से बोलता है
“वो साहब शाम को आई थी, और सिगरेट पी रही थी…इसीलिए…” बदरी शरमाते हुए बोलता है
“फोटो खींची…फोटो…” मनोज बदरी से मज़ाक में कहता है
बदरी शर्मा जाता है और सर हिला कर मना कर देता है|
महिपाल मनोज को इशारा करता है, दोनों दुकान से बाहर निकल जाते है| इस बार महिपाल बोलता है, “क्या लगता है कौन हो सकती है? किसी औरत का चक्कर..?”
“हाँ सर था तो एक नंबर का रसिया…डॉली और दिवाकर की बहन दोनों के चक्कर में था..सर कहीं दिवाकर की बहन तो नहीं…”
महिपाल कुछ सोचता है जैसे मानो कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो। फिर बिना कुछ बोले मनोज को बाइक स्टार्ट करने का इशारा करता है| बाइक पर बैठे–बैठे महिपाल फ़ोन पर किसी से बात करता है फिर चालू फ़ोन पर मनोज को रास्ता बताता जाता है|
भाग 14: शह और मात (Ch 14: Shah aur Maat)

एक साधारण सी तीन मंजिला बिल्डिंग के बाहर बाइक रुकती है, दोनों बिल्डिंग को देखते है फिर महिपाल गेट पर चौकीदार से बात करता है। महिपाल को बाइक लगा कर अंदर आने का इशारा करता है फिर दोनों सीढ़ी चढ़ने लगते हैं| सीढ़ी चढ़ते- चढ़ते मनोज महिपाल से पूछता है, “सर कुछ बोलोगे? कहाँ ले कर आए हो…किसका घर है?”
अब तक दोनों पहली मंजिल के एक दरवाज़े पर होते हैं, महिपाल घंटी बजाता है और मुस्कराते हुए मनोज से बोलता है, “कातिल के घर!”
मनोज चौक जाता है|
दरवाज़ा खुलता है और अन्दर से एक लड़की निकलती है, “यस”
महिपाल बोलता है, “हेल्लो दिव्या!” फिर दरवाज़ा धकेलता है और अन्दर पहुँचता है और मुस्कराते हुए बोलता है, “और कहानीकार कैसे हो?”
अन्दर सोफे पर शराब का ग्लास पकड़े मंदार बैठा होता है|
मनोज पिस्टल हाथ में लिए गेट पर पोजीशन ले लेता है|
दिव्या और मंदार दोनों की हवाइयां उड़ चुकी होती है, फिर भी मंदार संभलते हुए बोलता है, “सर आप? यहाँ कैसे….?”
महिपाल मुस्कराता है और मनोज से कहता है, “मनोज कहानी सुनोगे?…एक कहानी सुनाता हूँ”
मनोज अभी भी असमंजस में होता है|
महिपाल बोलना शुरू करता है, “एक कहानीकार होता है…जो अपने शब्दों के जाल में किसी को भी फंसा लेता है, एक बार उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी का प्रेम प्रसंग किसी और के साथ रह चुका होता है….कहानीकार ये बात पचा नहीं पाता है और अपनी प्रेमिका के साथ मिल कर पहले एक कहानी गढ़ता है फिर उस कहानी को अमल में लाता है और उसके बाद पहले अपनी पत्नी को मारता है फिर उसके पुराने प्रेमी को….क्यों ठीक कहा न…मिस्टर कहानीकार”
अब तक मंदार के चेहरे के भाव बदल चुके होते हैं…लगा मानों आत्मसमर्पण कर चुका हो, फिर हँसते हुए बोलता है, “क्या बात है इंस्पेक्टर साहब…यहाँ तक पहुचे कैसे?”
अब महिपाल के तेवर बदल चुके थे, वो गुस्से में बोलता है, “साले, तुमने क्या कानून को उपन्यास समझ रखा है…जैसा चाहोगे घुमा दोगे..अरे कानून के हाथ तुम्हारी कलम से कहीं ज्यादा लम्बे हैं…जहाँ तुम्हारी सोच ख़तम होती है, वहां से तो हम सोचना शुरू करते है….’साले चरसी’….तुझे क्या लगा, ये जो सिगरेट में गांजा मिला कर पीता है…पकड़ा नहीं जाएगा…” फिर आगे बोलता है, “अरे तुझ पर तो शक मुझे तभी हो गया था जब तू उस दिन थाने के बाहर मिला था…तेरी सिगरेट की गंध बाकी सिगरेट से थोड़ी अलग थी….और ठीक वैसी ही सिगरेट की गंध मुझे दिवाकर के घर पर मिली थी|
मंदार हँसते हुए बोला, “लेकिन वैसी सिगरेट तो कोई भी पी सकता है, और हम दोनों तो वहां मौजूद भी नहीं थे…आपने मेरे कॉल रिकॉर्ड देखा था”
महिपाल हंस कर बोलता है, “लेकिन मैंने तो दोनों की बात ही नहीं की…”
अब मंदार झेप जाता है, उसे लगा वो अपने ही शब्दों में फंस गया था|
“अब आगे की कहानी तुम बताओगे या हमसे सुनोगे” महिपाल बोला
मंदार शराब का एक घूँट लगाता है फिर बोलना शुरू करता है, “साला… राजपूत की बीवी….किसी और का इश्क…मज़ाक है क्या?….डाली के प्यार की खबर तो हमको पहले ही लग चुकी थी….लेकिन शादी कर चुके थे तो चुप थे…खैर.. डॉली मायके गई तो दिव्या से हमारी नजदीकी बढ़ गई और बातों- बातों में हमने दिव्या को सब बता दिया….फिर हम दोनों ने ही मिल कर उसे रास्ते से हटाने का फैसला किया….सब कुछ प्लान के मुताबिक था…हम बड़े- बाबू के घर गए, उन्हें शराब पिलाई फिर शराब के नशे में पाली ले गए…वहां दोनों को आमने सामने किया फिर वापस आ गए| अगले दिन मौका देख डॉली को ख़तम कर दिया, फिर दिव्या को बुलाया और डॉली के फोन से बड़े-बाबू को फ़ोन करवाया कि उससे मिलना चाहती है, वो भी अर्जेंट”
“बस यहीं तुम्हारी कहानी कमज़ोर पड़ गई कहानीकार तुमने एक नहीं दो –दो गलतियाँ कर दी…” महिपाल ताना मारते हुआ बोला| “डॉली के क़त्ल का टाइम और डॉली के फ़ोन से दिवाकर को किये गए फ़ोन के टाइम में फर्क था…रिपोर्ट के मुताबिक डॉली का कत्ल 4 से 5 के बीच हुआ था और और जो कॉल हुई थी वो 4 बज कर 46 मिनट पर की गई थी …..10-15 मिनट में तुम्हारे घर पहुंचना, फिर बात करना और उसके बाद क़त्ल करना पॉसिबल नहीं है| दूसरा तुम्हारे घर पर जो सिगरेट के बड मिले थे उसमे एक बड पर लिपस्टिक का निशान था….जो दिव्या मैडम का था….इनको सिगरेट पीते हमने तुम्हारे ऑफिस में ही देख लिया था….अब छोटे शहर में ये नज़ारा आम थोड़े होता है|”
मनोज महिपाल का तर्क सुन कर चौंक जाता है फिर मुस्कराता है|
“अब आगे सुनाओ…” महिपाल मंदार को इशारा करता है
मंदार सिगरेट जलाता है और बोलता है, “प्लान के मुताबिक हम दोनों दरवाज़ा लॉक कर बाहर आ जाते है, फिर दिव्या हमारा फ़ोन लेकर रॉयल बार के पास चली जाती है और हमारा इंतज़ार करती है… हम वहां से बड़े-बाबू के घर के पास आ कर उसके लौटने का इंतज़ार करते है| बड़े-बाबू डॉली से मिलने आते है पर दरवाज़ा नहीं खुलता..फिर वह लौट कर वापस घर आ जाते है….थोड़ी देर बाद हम उनके घर जाते है और उनको पुरानी बातें भूलने को बोलते है…फिर हम दोनों शराब पीते है….मौका पा कर हम बड़े-बाबू की शराब में नशे की गोली मिला देते है और फिर तीसरे पेग में गोलियों का ओवरडोज़ दे देते हैं|”
“दिलीप को क्यों मारा उस बेचारे की क्या गलती थी…” इस बार मनोज पूछता है
मंदार हंसा फिर एक घूँट शराब पीते हुए बोला, “वो बेचारा तो बिना बात फंस गया…जब हम बड़े-बाबू के घर से निकले तो वो गेट पर ही मिल गया..पहले तो हम घबरा गए…फिर हमने उसे बहकाते हुए कहा कि बड़े-बाबू घर पर नहीं हैं और अपने साथ ब्लू हैवन बार ले गया….थोड़ी देर बाद हमने कहानी बनाई कि हमारा फ़ोन बड़े- बाबू के लॉन में छूट गया है और फिर दिलीप का फ़ोन ले कर हम बड़े बाबू के घर के पास आ गए…वहां PCO से दिव्या को फ़ोन किया और उसे पास बुलाया|
“बस उसी समय दिलीप की पत्नी का फ़ोन आ जाता है और तुम अपना फ़ोन समझ कर कॉल उठा लेते हो” महिपाल बीच में मंदार को रोकते हुए बोलता है|
मंदार चौक जाता है…मनोज भी आश्चर्यचकित होता है|
महिपाल मनोज से बोलता है, “याद है दिलीप की बीवी ने क्या कहा था….कि कॉल के समय नेटवर्क प्राब्लम थी और बारिश हो रही थी”
मनोज सहमती में सर हिलाता है|
“लेकिन जयपुर में पिछले 20 दिन से बारिश ही नहीं हुई” महिपाल मनोज को देखते हुए बोलता है
मनोज कुछ सोचता है फिर मुस्कुरा देता है
“और एक बात….,दिव्या दिवाकर के घर के पास भी सिगरेट पीती है…चरस वाली सिगरेट के बड पर लिपस्टिक के निशान मिले थे झाड़ी में…दिवाकर के घर के पास|” महिपाल आगे बोलता है
“हाँ कहानीकार…आगे सुनाइए…” महिपाल ताना मारते हुए मंदार से बोलता है
“वहां से हम और दिव्या दिलीप को पिक करते हैं और एक लॉज दिलाने ले जाते हैं…वहां शराब पिलाते हुए दिलीप को नींद की गोलियों का ओवर डोज़ दे देते हैं|
“ये वही लॉज है ना, जहाँ तुम और दिव्या अक्सर जाया करते थे…” महिपाल उसे रोकते हुए बोलता है…फिर आगे बोलता है, “और वहीँ दिलीप की बीवी का फ़ोन फिर से आ जाता है…लेकिन इस बार फ़ोन गलती से उठाती है….दिव्या! पर मंदार के इशारे पर फ़ौरन ही फ़ोन काट देती है| वापस फ़ोन आने पर मंदार बात करता है और बोलता है की मौसम ख़राब होने के कारण बात नहीं हो पा रही है…फिर दिव्या DTH का ID लेकर नीचे रिचार्ज कराने जाती है…”
दिव्या चौंक जाती है और मंदार को देखने लगती है|
“जी मैडम छोटे शहरों में लड़कियां अगर खुले आम सिगरेट पिएं तो उनपर कई निगाहें होती है…ठीक वैसी ही एक निगाह रिचार्ज शॉप पर काम करने वाले लड़के की भी थी…वैसे भी उसने तुम्हे पहले भी देखा था…इसी लॉज में|”
रही बात शक के यकीन में बदलने की तो कहानीकार तुम्हारी कहानी में दिवाकर तुम्हारे साथ सिगरेट पीता है…जबकि उसकी मेडिकल हिस्ट्री में उसे अस्थमा था और सिगरेट पीना सख्त मना था…उसके घर वालों ने भी यही बताया है…|”
महिपाल दिव्या की तरफ मुड़ता है और बोलता है, “और रही बात यहाँ तक पहुंचने की तो आप की सिगरेट और आपकी नज़र पर मेरी नज़र तब से थी जब मैं तुम्हारे ऑफिस आया था…वही छोटे शहरों में लड़कियों का सिगरेट पीना….और चोर निगाह से पुलिस वाले को देखना….बस दोनों कड़ियों को जोड़ा…ऑफिस से आपका एड्रेस लिया और आ गए आप लोगों को ले जाने|
“तीन-तीन क़त्ल के जुर्म में,यू बोथ आर अंडर अरेस्ट” महिपाल मंदार का कॉलर पकड़ कर उसे उठाते हुए बोलता है। फिर मनोज से बोलता है, “मनोज! थाने फ़ोन कर के टीम बुला लो और एक महिला कांस्टेबल भी बोल देना|”
समाप्त।।