कहानी-हक़ीम लुक़मान: आर्मेनिया की लोक कथा

दानी देश के अचानक तेज़ बारिश में घिरे पन्द्रह वर्षीय शिकारी पर्तो ने एक गुफ़ा में शरण ली । पर्तो ने गुफ़ा में जो देखा वह अविश्वस्नीय था । उसने देखा, एक बूढ़ा, जिसका सिर मानव का था और धड़ साँप का । चार साँप उसके आसपास लोट रहे थे । मानव-सिर और साँप-धड़ वाला वह बूढ़ा, सर्प नरेश था, साँपों का राजा, नागराज ।
आग जलाकर पर्तो ने अपने गीले कपड़े सुखाए, अलाव में विभिन्न पशु-पक्षियों का माँस भून कर क़बाब तैयार किया । साँपों व साँपों के राजा को खिलाया, फिर ख़ुद भी खाया । क़बाब खा कर सर्प-नरेश ने कहा, “जो क़बाब खिलाए वो पानी भी अवश्य पिलाए ।” पर्तो कुएँ से पानी की मश्क़ (चमड़े से बनी थैली) भर लाया। पत्थर को छैनी से खुरच-खुरच कर उसमें एक कटोरा सा बना दिया और कटोरे में पानी उड़ेल दिया । उस कटोरे में से पानी पीकर सभी नाग अपने -अपने स्थान पर जा बैठे। लेकिन नागराज ने कहा, “बच्चे! अब तुम पानी कैसे पिलाओगे? पर्तो ने लकड़ी के एक गहरी करछुल बनाई और नाग राज की प्यास बुझाई।
तीन दिन, तीन रातें, लगातार वर्षा होती रही । पर्तो के पास गुफ़ा में ही रुकने के अलावा कोई और समाधान भी तो नहीं था । “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम इस गुफ़ा तक हमेशा के लिए एक पानी की धारा पहुंचा दो? ” नागराज ने पर्तो से कहा । और पर्तो ने एक पहाड़ी झरने का पानी छोटी नाली खोद कर गुफ़ा तक पहुँचा दिया ।